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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रो भवे प्राप्तो जीवः दीक्षामादाय संयमादिरतः अपगत सकलबन्धनः सन मुत्तयवस्थायां स्वस्थो भूत्वा पुनश्च स्वशासनस्य महिमनिन्दादिदर्शनजनितरागद्वेषोदयात् कर्ममलमलिनो भवति । एवं त्रैराशिकानां मते राशित्रयावस्थो भवति जीवः, सू० १२॥ - पूर्व गाथाद्वयेन त्रैराशिकमतमुपपाद्य तन्मतं निराकत्तुमाह "एपाणु वीइ" इत्यादि। मूलम्एयाणुवीइ महावी, बंभचेरे ण ते वसे । पुढो पावाउया सव्वे, अक्खायारो सयं सयं ॥१३ .. छायाएताननुविचिन्त्य मेधावि ब्रह्मचर्ये ण ते बसेयुः। पृथक् प्रावादुकाः सर्वे आख्यातारः स्वकं स्वकम् ॥१३ निन्दा होने से उत्पन्न होने वाले रागद्वेप के उदय से फिर कर्ममल से मलीन बन जाता है। इस प्रकार त्रैराशिकों के मत में जीव की तीन अवस्थाएँ होती हैं ॥१२॥ ___पिछली तीन गाथाओं में हुए त्रैराशिक मत का निराकरण करने के लिए सूत्रकार कहते हैं-" एयाणुवीइ" इत्यादि । शब्दार्थ--'मेहावी-मेधावी' बुद्धिमान् पुरुष 'एया-एतान्' इन पूर्वोक्त वादियों के विषयमें 'अणुवीई-अनुविचिन्त्य' विचार करके यह निश्चय करे कि ते-ते' वे अन्यतीथिक 'बंभवेरे-ब्रह्मचर्ये' ब्रह्मचर्य में 'ण वसे-न वसेयुः स्थित नहीं है किन्तु 'सवे पावाउया-सर्वे प्रावादुकाः' वे सभी થવાથી તેમને આત્મા દેયુક્ત બને છે અને પિતાના શાસનને માહિમા વધવાથી તેમના આત્મામાં આનંદ થાય છે. આ પ્રકારે રાગદેષનો ઉદય થવાને કારણે તેમને આત્મા ફરી કર્મમળથી મલિન થઈ જાય છે, રાશિકના મત અનુસાર જીવની આ પ્રકારની ત્રણ અવસ્થાઓ હોય છે. ૧ર : }'આગલી એ ગાથાઓમાં જે રાશિક મતનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે. તેનું ..उन २५ भाटे सूत्रा२ ४३.छे 3- “एयाणु वीइ" त्याह..... सहा- 'मेहावी--मेधारी' मुद्धिमान भास 'एया-एतान्' मा पूर्वरित वाहियाना विषयमा 'अणु ई--अनुविचिन्त्य' वियार ४ीने 20 निश्चय ४२ तेते तो अन्य ती व भचेरे--ब्रह्मवये' प्रहायर्यमा ण वसे-- बसेयुः' स्थित नथी परंतु 'सव्वेपावाउया सर्व प्रावादुकाः' तेसो ५५॥ अथ १२॥ २४६५४ छ. 'पुढो--पृथक' For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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