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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थ बोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १ अकारकवादि-सांख्यमतनिरूपणम् १९१ सर्वथा क्रियाशून्ये आत्मनि स्वीक्रियमाणे अप्रच्युताऽनुत्पन्नस्थिरैकस्वभावे सर्वथा नित्ये स्वीक्रियमाणे च आत्मनि कुतः कस्मात् कारणविशेषात् स्यात् । न कथमपि घटेत । अयमाशयः-यदि जीवः कूटस्थ नित्यः तदा तस्य देहाद देहान्तरे गमनाऽऽगमनासंभवात् । मनुष्यशरीरं विहाय देवशरीरग्रहणस्वरूपं जन्म कथं स्यात् । कथं च पूर्वशरीरत्यागरूपं मरणं वा संभवेत् । नहि सर्वथा व्यापकस्य गगनस्य गमनागमनं संभवति । गगनवत् यदि आत्मापि सर्वव्यापको नित्योऽमूर्तश्च भवेत् तदा तादृशात्मनोऽपि गत्यागती न संभवेताम् । ततश्च जन्ममरणादिव्यवस्थाया अभाव एव प्रसज्येत । जन्ममरणाऽभावे उपभोगसाधन शरीराणां देवमनुष्यादीनां प्राप्तेरभावात् । कश्चित्सुखी, कश्चिदुःखी, कश्चित्बद्धः, --- मनुष्य एवं देवगति वाला संसारनामक प्रपंच आत्माको क्रिया शून्य मानने पर, तथा अपने स्वरूप से च्युत न होना, उत्पन्न न होना एवं स्थिर एक स्वभाव रूप सर्वथा नित्य मानने पर आत्मा में किस प्रकार होगा ? अर्थात् किसी भी प्रकार से घटित नहीं होसकता । तात्पर्ययह है कि जीव यदि कूटस्थ नित्य है तो उसका एक देह से दूसरे देह में जाना संभव नहीं है। फिर मनुष्य शरीर को छोडकर देव शरीर को ग्रहण करना रूप जन्म कैसे होगा ? पूर्व शरीर का त्यागना रूप मरण भी कैसे हो सकेगा? सर्वथा व्यापक आकाश का गमन आगमन नहीं हो सकता। अगर आत्मा भी आकाश की तरह सर्वव्यापक, नित्य और अमूर्त है तो उसकी भी गति और आगति होना संभव नहीं है। ऐसी हालत में जन्म और मरण आदि की व्यवस्था का अभाव हो जाएगा। जन्म और मरण के अभाव में उपभोग के साधन देव मनुष्य आदि के शरीर की भी प्राप्ति नहीं होगी। कोई सुखी हो, कोई दुःखी, कोई बद्ध, कोई मुक्त, इस प्रकार की व्यवस्था भी किसी भी प्रकार सिद्ध न होगी। કથનને ભાવાર્થ એ છે કે જીવ જે કૂટસ્થ નિત્ય હોય, તે તેનું એક દેહમાંથી બીજા દેહમાં ગમન સંભવી શકતું નથી. તે પછી મનુષ્યશરીરને છોડીને દેવશરીરને ગ્રહણ કરવા રૂપ જન્મ કેવી રીતે સંભવી શકે? પૂર્વશરીરને ત્યાગ કરવા રૂપ મરણ પણ કેવી રીતે સંભવી શકે? જેવી રીતે સર્વવ્યાપક આકાશનું ગમનાગમન સંભવી શકતું નથી, એજ પ્રમાણે જે આત્માને પણ સર્વવ્યાપક, નિત્ય અને અમૂર્ત માનવામાં આવે, તે આત્માની પણ ગતિ આગતિ સંભવી શકે નહીં. એવી પરિસ્થિતિમાં જન્મને મરણ, આદિની વ્યવસ્થાને પણ અભાવ જ થઈ જાય. જન્મ મરણને અભાવ હોય, તે ઉપભેગના સાધનરૂપ દેવ, મનુષ્ય આદિને શરીરની પ્રાપ્તિ પણ થઈ શકે નહીં. અને કઈ For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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