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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७६ www.kobatirth.org सूत्रकृताङ्गसूत्रे तज्जीवतच्छरीरवादिमतं तथा अकारकवादिसांख्यमतं च निरसितुमाह -- ' जे तेउ' इत्यादि । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूलम् २ जे ते उ वाईणा एवं लोए तेर्सि कओ सिया । 6 १० ११ ९ ८ तमाओ ते तमं जैति, मंदा आरंभनिस्सिया ||१४|| छाया ये तेतु वादन एवम् लोकस्तेषां कुतः स्यात् I तमसस्ते तमो यान्ति मन्दा आरंभनिः श्रिताः || १४ || इस प्रकार सात रूपों द्वारा आत्मा को प्रकृति बद्ध करती हैं, आत्मा नहीं वही प्रकृति फिर उसे मुक्त करती है । यह आकारकवादियों का मत है । आत्मा कर्ता नहीं है, ऐसा कहते हुए सांख्य अकारकवादी हैं, अतएव भ्रष्ट हैं ||१३|| तज्जीवतच्छरीरवादी तथा अकारकवादी सांख्य के मत का निराकरण करने के लिए कहते हैं, -- “जे तेउ" इत्यादि । शब्दार्थ - 'एवं - एवम्' इस पूर्वोक्त प्रकार से 'चाइणो वादिनः' तज्जीवतच्छरीरवादी कहते हैं 'तेसिं- तेषां ' उनकेमत में 'लोए-लोकः' परलोक 'कओसिया-कुतः स्यात् ' कैसे हो सकता है ? 'ते - ते' वे बादी 'आर' भनिस्सिया - आरम्भनिश्रिताः प्राणातिपातादि आरम्भ में आसक्त 'मंदा - मन्दाः पापके फलके नहीं जानमेवाले मूर्ख' 'तमाओ तमसः' एक अन्धकार से 'तम तमः' दूसरे अज्ञानको 'जति यान्ति प्राप्त करते हैं ॥१४॥ આ પ્રકારે સાત રૂપે દ્વારા આત્માને પ્રકૃતિ બદ્ધ કરે છે-આત્મા કરતા નથી એજ પ્રકૃતિ ત્યાર બાદ તેને મુકત કરે છે, આ પ્રકારને અકારકવાદીઓના મત છે. આત્મા કર્તા નથી, આ પ્રકારની માન્યતા ધરાવનારા સાંખ્યાને અકારકવાદી કહે છે. અને આ પ્રકારની તેમની માન્યતા ખરેખર ધૃષ્ટતા રૂપ જ માનવી જોઇએ “ગા. ૧૩૫ હવે સુત્રકાર તજીવતછારીરવાદી તથા અકારકવાદીઓના (સંખ્યાના ) મતનુ उन वा भाटे नीथेनु सूत्र अडे छे" जे तेउ” प्रत्याहि 22—— '07-03' uydisa usızell ‘arçon-arfza:' droya d2ylपाही हे छे. 'तेसि तेषां ' तेयोना भतभा 'लोए लोक:' परसो 'कओसिया-कुतः स्यात्' डेवी रीते अड्डी शाय ? 'ते ते' ते मतवाहीओ 'आर' भनिस्सिया आरंभनिश्रिताः प्रातिपात विगेरे मारंभां न्यायस्त येवा तेथे 'मंदा- मन्दा:' पापना इणने नही लागु नारा भूर्मायो 'तमाओ तमसः' मे संधारा थी अज्ञानथी 'तम-तमः' जीन अज्ञानने 'जति यान्ति' आप्त रे ||१४| For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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