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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सार्थबोधिनी टीका प्र. अ. १ चार्वाकमतस्वरूपनिरूपणम् " संकलनाज्ञानं न स्यात् तथाहि प्रत्येकमिन्द्रियं स्वस्वविषयग्रहणे एव प्रवणम् यथा चक्ष रूपमेव विषयीकरोति नतु रसनेन्द्रियादिविषयान् विषयीकरोति कदाचिदपि, एवंच यदिकश्चिद् आत्मा इन्द्रियव्यतिरिक्तो न भवेत्तदा परिच्छेत्तुरभावात् मया पञ्चापि विषयाः परिच्छिन्ना इत्याकारक संकलना ज्ञानस्याभावप्रसंगादतो ज्ञानाधिकरणं ज्ञानभिन्नश्रात्मा अवश्यमेवांगीकरणीय इति । न च ज्ञानाधिकरणमतिरिक्तो नास्तिकश्चिदद्रव्यरूपः किन्तु ज्ञानमेवालया परपययं प्रवृत्तिविज्ञानस्य जनकमधिकरणं च अर्थात् विज्ञानं द्विविधम्, आलयविज्ञानं प्रवृत्तिविज्ञानं च तत्राहमास्पदम् सुखाद्यनुसंधातुआलयविज्ञानम्, द्वितीयं तु- घटादि विषयकम् । तदुक्तं चाहिए । ऐसा स्वीकार न करेंगे तो संकलना ज्ञान नहीं होगा । क्योंकि प्रत्येक इन्द्रिय अपने विषय को ही ग्रहण करने में समर्थ होती है। चक्षु रूप को ही जानती है, रसादि को कदापि नहीं जान सकती । इस प्रकार यदि इन्द्रियों से भिन्न आत्मा का अस्तित्व न होगा तो ज्ञापक का अभाव होने से “मैंने पाँचों ही विषय जाने" इस प्रकार के संकलनाज्ञान का अभाव हो जाएगा । अतः ज्ञान का अधिकरण किन्तु ज्ञान से कथंचित् भिन्न आत्माका अवश्य ही स्वीकार करना चाहिए । ज्ञान का अधिकरण कोई द्रव्य नहीं है, किन्तु "आलय " (आधार) इस नामान्तर चाला ज्ञान ही प्रवृत्ति विज्ञान का जनक होता है और वही अधिकरण है । अर्थात् विज्ञान दो प्रकार का है आलय विज्ञान और प्रवृत्ति विज्ञान | इसमें “अहम् " प्रत्यय का आधार और सुखादि का अनुसन्धानकर्त्ता आलयविज्ञान है और घट आदि को विषय करने वाला प्रवृत्तिविज्ञान कहलाता સકલના જ્ઞાન અસ’ભવિત થશે, કારણ કે પ્રત્યેક ઇન્દ્રિય પાત પેાતાના વિષયને ગ્રહણ કરવાને સમર્થ હોય છે. ચક્ષુ દ્વારા રૂપને જ જાણી શકાય છે, રસાદિના અનુભવ ચક્ષુ દ્વારા કદી થઈ શકતા નથી. આ પ્રકારે ઇન્દ્રિયાથી ભિન્ન એવા આત્માના સદ્ભાવ ન હેાય, તે જ્ઞાપકના અભાવ હાવાથી મેં પાંચ વિષય જાણ્યા,” આ પ્રકારના સકલના જ્ઞાનના અભાવ થઈ જશે. તેથી જ્ઞાનના આધાર રૂપ અને જ્ઞાનથી કંઈક ભિન્ન એવા આત્માના સ્વીકાર अवश्य ४२वोन लेखि ज्ञाननु अधिर (आधार) अर्ध द्रव्य नथी, परन्तु "मासय” (આધાર) આ નામાન્તર વાળું જ્ઞાન જ પ્રવૃત્તિવિજ્ઞાનનું જનક હાયછે અને એજ અધિ १२ ३५ पशु छे. भेटले } विज्ञान मे प्रारनु छे - (१) मासय विज्ञान भने ( २ ) अंgत्तिविज्ञान. तेभांथी “अहम्” “हु" प्रत्ययनो आधार भने सुहिनु अनुसन्धान उत આલયવિજ્ઞાન છે. અને ઘટ આદિને વિષય કરનારૂ' (ગ્રહણ કરનારૂ) જે વિજ્ઞાન છે તેને For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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