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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ तात्पर्यदीपिकासमेता- [३ मुक्तिखण्डेविषुवायनकोलेषु ग्रहणे सोमसूर्ययोः॥ व्यतीपाते तथा पर्वण्याायामिन्दुवासरे ॥ ९९॥ नात्वा यो वेदतीर्थेऽस्मिञ्श्रद्धया परया सह ॥ प्रदक्षिणत्रयं कृत्वा वेदारण्याधिपं शिवम् ॥ १०० ॥ प्रणम्य दण्डवत्तस्मै प्रदत्त्वा दीपमच्युत ॥ निष्कमात्रं धनं दत्त्वा श्रद्वया शिवयोगिने ॥१॥ उपवासं करोत्यत्र स मुक्तो नात्र संशयः॥ सुमुहूर्तेषु यस्तत्र स्नात्वा दृष्ट्वा महेश्वरम् ॥२॥ शिवयोगिकरे दत्त्वा पणमात्रं धनं मुदा ॥ ब्रह्महत्यादिभिः पापैर्मुच्यते नात्र संशयः॥३॥ अत्रैव मरणं प्राप्तो विमुक्तो भवति ध्रुवम् ॥ सर्वरोगहरं स्थानमिदं भक्तिमतां नृणाम् ॥४॥ मया च मम देव्या च मम भक्तैर्महत्तमैः॥ पूजितं पुण्यदं स्थानमेतद्भुक्तिविमुक्तिदम् ॥५॥ मुक्त्युपायो मया प्रोक्तः सर्ववेदान्तसंग्रहः ॥ श्रद्धाहीनाय मर्याय न देयोऽयं त्वयाऽच्युत ॥६॥ सूत उवाच इति माहेश्वरं वाक्यं निशम्य कमलेक्षणः ॥ प्रणम्य देवमीशानं परितृप्तोऽभवदरिः ॥ १०७॥ इति श्रीस्कन्दपुराणे सूतसंहितायां मुक्तिखण्डे मुक्त्युपायकथनं नाम तृतीयोऽध्यायः॥३॥ ॥ ७९ ॥ ८० ॥ ८१ ॥ ८२ ।। ८३ ॥८४॥ ८५ ॥ ८६ ।। ८७॥८८॥ ॥ ८९ ॥ ९० ॥ ९१ ॥ २२ ॥ ९३ ।।९४ ॥ ९५ ।। ९६॥ ९७ ॥ ९८ ।। ॥ ९९ ॥ १०० ॥ १ ॥ २ ॥ ३ ॥ ४॥ ५॥ ६॥ १०७ ।। इति श्रीसूतसंहितातात्पर्यदीपिकायां मुक्तिखण्डे मुक्त्युपायकथनं नाम तृतीयोऽध्यायः॥३॥ १ ङ, काले च । २ ग. तत्रैव । For Private And Personal Use Only
SR No.020777
Book TitleSsut Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahadev Chimnaji Aapte
PublisherAnand Ashram
Publication Year1893
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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