________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | दिजइ एसा रायसुर्य मोत्तु चित्तवेगस्स / ता तस्साव अम्हाणवि पाणाणवि संसओ होइ // 116 // ता सुंदरि ! न हु कर्ज अमेहिं * एत्थ बहुविगप्पेहिं / तह भणसु कणगमालं जह उज्झइ तम्मि अणुरायं // 117 // किंच / उत्तमकुलप्पसूओ पियवओ सयलजणमणाणंदो / सूरो धीरो चाई नियपिउलच्छीअलंकरिओ // 118 // स्वेण जोव्वणेण य कलाहिं विजाहिं निम्मलगुणेहिं / विक्खाओ नहवाहणकुमरो सव्वम्मि वेयड्डे // 119 // तत्तो स एव भत्ता कमागओ होउ | कणगमालाए / न हु कजं अण अवायबहुलेण पुरिसेणं / / 120 // एवं च अमियगइणा भणियाए ताहि चित्तमालाए / भणिया है। सोमलए ! किं जुत्तं संपयं काउं? // 121 // तत्तोय मए मणिय तं चेव य इत्थ गहियपरमत्था / नियधूयाए सरुवस्स एत्थ किमहंभणामिति // 122|| तो भणइ चित्तमाला तीए गंतूण भावमुवलभसु / इच्छइ व नवा अचं पुरिसं गुणदोसकहणेण // 123 / / नहवाहणं पसंसिय अमहिय गुणेहि, निदिऊण / तह कुणसु जहा इच्छह वीवाहं एयतणएण // 124 // तत्तोय मए भणिय सामिणि ! किंतं न याणसि | समावं / नियधूयाए जेणं आएसं देसि मह एवं // 125 / / मनिस्सइ वीवाहं जं सा अण्णस्स, अच्छउ सुदूरं / सोउं पउत्तिमेयं मन्ने जीयं परिआयइ // 126 // मह वयणं सोऊणं गुरुदुक्खसमाहया भणइ तत्तो। वियलंतसकजलनयणसलिलसामलियगंडयला // 127 // ज भणसि | तुम भद्दे ! मज्झवि हिययम्मि फरह तं सच्चं / नवरं हयासविहिणो वसेण अइदुक्करं जायं // 128 // युग्मम् / तत्तो अइगुरुसोगंरुयमाणिं पिच्छिऊण नियदइयं / वारियममियगइणा सुंदरि ! किं एत्थ भण? // 129 / / किं मह थोवं दुक्खं नवरं न चएमि अभहाकाउं। प्रियंवदः / 3 त्यागी / 3 अपायः कष्टम् / 4 अन्भहिय-अभ्यधिकम् / 5 निन्दित्वाऽन्यम् नभोवाहना भिन्नम् 6 परित्यजेत् / 7 विचलतू सकज्ज| लाभ्यां नयनाभ्यां सकाशात् यत् सलिलं वेन श्यामलिते गण्डतळे यस्याः सा / 8 दिवेन / 1 शक्नोमि / For Private and Personal Use Only