________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी- चरिख। चउत्थो परिच्छेओ। // 28 // भूमीए गयचेट्टो // 13 // घणसारसारगोसीसमीससलिलेण ताहि संसितो। सुकुमालतालविंटयसीयलपवणेण गयमुच्छो॥१४॥ परि| चिंतिउं पयचो पेच्छह दुचिहियविलासियं विहिणो। पियसंगमणोरहभंसणम्मि उज्जुत्तचित्तस्स // 15 // / अहवा / अनह परिचिंतिजइ सहरिसकंडुजएण हियएण / परिणमइ अग्रहचिय कारंभो विहिवसेण // 16 // कत्थ इमा कत्थ | अहं अभोणं कत्थ गरुयअणुरागो। नवरं हयासविहिणा सव्वं चिय अनहा विहियं // 17 // पुव्वंपि हु जइ बुद्धी एरिसया आसि तुझा रे दिव! / ता कह मह पढम चिय तीए सह ईसणं विहियं // 18 // काऊण दंसणं गरुयरायसहियं यास! रे! दिव्य अन्नत्थ तं मैयच्छि जोडेतो किं न लजिहिसि // 19 // ___अविय / नयणाण पडउ बज अहवा वजस्स बहिलं किंपि / अमुणियजणेवि दिवे अणुपंधं जाणि कुव्वंति // 20 // खणपरि| चियदुल्लहलोयकारणे कीस हियय ! तं मिहंसि ! / मुंचसु गरुयविसायं विवरीओ हयविहीं जेण // 22 // एरिसदुब्बिसहेवि हु संजाए | हिययं गरुयदुक्खम्मि / वजघडियंव मोज नवि सैयसिकरं जासि // 22 // एमाइबहुविगप्पं चिंतेमाणस्स गरुयसोगस्स / तवि-| | रहमियमाणसस्स तइया महं कुमर ! // 23 // पुणरवि सा सोमलया समागया किंचि हरिसियाव मणे / उवविट्ठा में दटुं सुदृढं | | विसायाउरं तइया // 24 // युग्मम् // ता भणइ कीस सुंदर! दीससि तं दुम्मणोव्व अच्चत्थं / सुणिउं वरणयवत्तं, ताव निसामेसु मह |क्यणं // 25 // भणियं च मए अञ्जवि किं आसा कावि अत्थि अम्हाण | वजरसि जेण एवं सोमलए!, ताहि सा भणइ // 26 // तुह विरहे | तालवृन्तकं व्यजनम् / 2 भ्रंशनं नाशनम् / 3 हर्षेण सहिता या कण्डः अभिलाषातिरेकस्तत्रोद्यतेन / 4 देव / / 5 ताम् / 6 मृगाक्षीम् / 7 योजयन् / 8 महत् / 1 भणुमिओ-अज्ञातः / 1. मेधसे स्निह्यसि / " शतसीकर-शतचण्डम् / 12 दूमियादावितळपीडितम् / // 28 // For Private and Personal Use Only