________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीओ सुरसुंदरीचरि। परिच्छेओ। // 18 // भुयंगे अंगविलग्गे महमणेगे // 244 // आमंति भणतेणं तब्वयणं सोयरं कयं सव्वं / अच्छोडिया जलेणं झत्ति विलीणा अह भुयंगा // 245 // ____ अविय / मणिसलिलेणं सित्ता खणेण सव्वेवि पाविया विलयं / खरजालावलिजलणोवताविया मयणपिंडव्व // 246 // अह सो पणट्ठवियणो सीयलतरुछाहियाए उवविट्ठो। मेहपुरिसकयसुकोमलकिसलयसंछण्णसंथरए // 247 // आभट्ठो पढमं च तेण अहयं कत्तो तुम आगतो, किंवा नाम कहिं कुलम्मि विमले जाओ सि, को ते पिया / एवं भो धणदेव ! तेण तइया पुढे मए साहिया पुव्वुत्ता सयलावि तुज्झ कहिया जा सा पंउत्ती तहिं // 248 // साहुधणेसरविरइयसुबोहगाहासमूहरम्माए / रागग्गिदोसविसहरपसमणजलमंत|भूयाए // 249 / / एसो एत्य समप्पइ विजाहरमोयणोत्ति नामेण / सुरसुंदरिनामाए कहाए बीओ परिच्छेओ॥२५०॥५०॥ ॥बीओ परिच्छेओ समत्तो॥ पणदृवियणा, किंवा ना // 18 // 1 सादरं यथा स्यात्तथा। 2 छाहिया छाया / 3 मत्पुरुषेण कृते सुकोमले किसलयः संछन्ने संस्तारके। 4 आभाषितः। 5 कथिता / 6 प्रवृत्तिः= वृत्तान्तः। For Private and Personal Use Only