________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरि। बीओ परिच्छेओ। | पउरपायवत्तणओ। कूइयसरसंसवणा गम्मइ विहगाण अत्थित्तं // 242 / / अन्नं च जीए लोया नीइपहाणस्स पुहइपालस्स / नयरीए * | इव न कुणंति कहवि उम्मग्गसंचरणं // 243 // वियडाडवीए तीए मझमज्झेण वयइ सो सत्थो / नियकोलाहलपडिखपडिपूरियर्जु- | भतरुविवरो॥२४४॥ तुंगतरुनियरसाहप्पसाहसंछनअंचरत्तणओ। सव्वंपि वहइ दियह अलग्गरविकिरणसंतावो // 245 // कैविकयगु रुतरवोकारसवणसंहसुत्तसंतबहुवसहो / उत्तसियवसहवालणनिमित्तपमुक्कहक्कारो॥२४६।। हकारसद्दपडिखसंसवणुत्तासियाण सैयराहं / के आयनंतो दिसि दिसि घूयाणं भूरिहुंकारे // 247 // वसहकंठपलंबिरघंटिया-रणियपूरियभूरितरंबरो। विसखुरुक्खयरेणुनिरंतरो, चयइ | तत्थ स वाणियसत्थओ॥२४८॥ साहुधणेसरविरइयसुबोहगाहासमूहरम्माए। रोगग्गिदोसविसहरपसमणजलमंतभूयाए // 249 // | एसो एत्थ सैंमप्पइ अडविपवेसस्स वनणो नाम / सुरसुन्दरिनामाए कहाए पढमो परिच्छेओ॥२५०॥ // पढमो परिच्छेओ समत्तो॥ बीओ परिच्छेओ। अह अन्नवासरम्मी कमेण बहुवोलियाए अडवीए / गहिय जलासयमेगं अह सो आवासिओ सत्थो // 1 // अह तम्मि सत्थलोए उल्लंद्दियसयलवसहनियरम्मि। जलइंधणाइअट्ठा इओ तओ 'परियडंतम्मि // 2 // पमुक्केसु दिसि दिसि चरणत्थं सव्ववसहमहिसेसु / , यस्याम् / 2 जुन्न-जीर्णम् / 3 कपि-1 4 सहसोत्त्रसत् / 5 वारण-1 6 सयराई शीघ्रम् / 7 आकर्णयन् / 8 वृषरोत्खातरेणुभिर्निरन्तरो व्याप्तः / रागनीमराणाग्निः / 1. समाप्यते। 11 बहतिकान्तायाम् / 12 उल्लदिय=भाराकान्तम् / 13 पर्यटति / // 9 // For Private and Personal Use Only