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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *म्मि। दिट्ठो पियवयाए अह नीओ तेण सट्ठाणं // 60 // तं जं तुमए पुढे तं एवं साहियं नरवरिंद!। मिलिही पुण अजेव य* *वियालसमयम्मि सो तुज्झ // 61 // सोऊण सूरिवयणं राया सुरसुंदरी य देवी य / पत्ता य गुरुपमोयं परिसा सव्वावि संविग्गा | // 62 // तत्तो रना भणियं जाव य पुत्तेण संगमो ताव / काहामि तओ सहलं मणुयत्तं तुह पासम्मि // 63 // | एत्यंतरम्मि पणमिय धणदेवो भणइ सुप्पइट्ठगुरुं / तइया पल्लीभंगे जाए घोरम्मि संगामे // 64 // कणगवईइ बलेणं हएसु नट्ठसु | भिल्लसुहडेसु / किं जाय तुम्हाणं कहवा समणत्तणं पतं? // 65|| भणियं गुरुणा निसुणसु तइया समरंगणम्मि जुझंतो। सरनियरवरिसविहुरियदेहो पडिओ धरावढे // 66 // दिहो य तं पएसं समागएणं सुचित्तवेगेणं / खयरेण तेण नीओ सिणेहसारेण वेयड्ढे // 67 // विहिओ य तक्खणं चिय ओसहिसामथओ अहं सत्थो। दिना य पवरविजा पुन्बुवगारं सरंतेण / / 68 // पन्नत्तीनामेणं | विहिणा सा साहिया मए तत्थ / तत्तो समागओहं सिद्धत्थपुरम्मि खयरजुओ॥६९॥ कणगवईइ समेयं सुरहं निद्धाडिऊण देसाओ। bell सिद्धत्थपुरे जाओ राया हं ताहि धणदेव ! // 70 // परिवालिऊण रज कइवि हु वरिसाण कोडिकोडीओ। अहिसिंचिऊण रजे जय सेणं निययपुत्तमहं ॥७शा घणवाहणकेवलिणो पयमूले जायतिव्वसंवेगो। पव्वइओ सह पंचहिं सएहिं वररायउत्ताणं // 72 / / युग्मम् // | अब्भसियसाहुकिरिओ जाओ कमसो य बारसंगविऊ / घणवाहणकेवलिणा अहिसित्तो ताहि सूरिपए // 73 // काऊण य सेलेसिं खविउं चत्तारि सेसकम्माई। सो अम्ह गुरू पत्तो निव्वाणं भद्द ! धणदेव ! // 74|| इय सुपइट्ठसूरी जाव य परिकहइ निययवुत्तंतं / तावय गयणाहिंतो एगो खयरो सेमोइन्नो // 75 // कयमूरिपणामेणं भणियं अह तेण विणयपणएण / वेयड्ढाओ बद्धावओ अहं आगओ 1 धरापृष्ठे / 1 जुओ=युतः सहितः। 3 निस्सार्य / 4 द्वादशावित् / 5 समोइन्नो समवतीर्णः। 6 वर्धापकः वर्धापनकर्ता / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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