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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailasagarsuri Gyanmandie सुरसुंदरी चरि // 125 // ** | दइयाए कणगमालाए। खयरो स चित्तवेगो अट्ठावयवंदओ चलिओ॥४४॥ भरहनरेसरकारियजिणिंदपडिमाओ तत्थ भत्तीए / वंदित्तु पडिनियत्तो पिच्छइ तं चालयं तत्थ // 45 // वेयड्डवणनिउंजं उञ्जोयंत संदेहदित्तीए / गलबद्धअंगुलीयगविहूसिय लोयणाणदंपरिच्छेओ | ॥४६दट्ठण अंगुलीयगनिवेसियं तं मणिं स विम्हइओ / भणइ य पिऐ! स एसो दिव्वमणी सुरवरदिन्नो // 47 // जस्स पभा| वाउ तया भुयंगपरिवेढिओवि न मओ हं / ता केण एस बद्धो इमस्म बालस्स गलयम्मि? // 48 // अहवा रक्खाहेउं नूर्ण जणणीए जायमित्तस्स / बद्धो हवेज तत्तो केणवि हरिऊण इह मुक्को // 49 // ता गेण्ह पिए! एवं होउ अपुत्ताए एस तुह पुत्तो। सोचिय नणं होही सुरजीवो एस उप्पनो // 50 // गहिऊण तयं नरनाह ! दोवि पत्ताई निययनयरम्मि / काउं बद्धावणिय पयासियं सय|ललोयस्स // 51 // जाओ उ कणगमालाइ गुत्तगम्भाइ संपयं पुत्तो। उचियसमयम्मि विहियं नाम से मयरकेउत्ति // 52 // विजा | हरिंदभवणे एवं बड्डइ नरिंद! तुह पुत्तो / एत्तो य तस्स देवी सयंपभा देवलोगाओ॥५३॥ चइऊण समुप्पन्ना एसा सुरसुंदरी | * महाराय ! / अह कमसो बड्डेती एसावि हु जोव्वर्ण पत्ता // 54 // // युग्मम् / / हरिऊण जेण नीया तइया खयरेण रयणदीवंमि / |सो य सुलोयणजम्मे हरिदत्तो आसि से जणओ॥५५।। इय पिच्छ विरूवत्तं भवस्स दुक्खागरस्स नरनाह ! / इच्छइ भोए भोत्तुं जणओ धृयाए सह जत्थ // 56 // काउं पिसायरूवं तेणेव सुरेण कालबाणेण। अवहरिउं विजाओ छूढो जलहिम्मि तुह पुत्तो // 57 // |सुरसुंदरिपि तत्तो जोयपओसो स जाव गयणेण / अवहरइ ताव नरवर ! संजाओ चवणसमओ से // 58 / / तस्स य चुर्यस्स एसा // 125 // | पडिया गयणाओ एत्थ उजाणे / धणदेवजाणवत्तं पत्तं पुण तुज्झ तणएण // 59 / / जायम्मि जाणभंगे पावियफलहो समुहमज्झ 1 उद्योतयन्तम् / 1 स्वदेहदीपया निजशरीरकान्त्या / 3 विस्मितः। 4 वर्धापनिकाम् / 5 जातप्रतोषः। (च्युतस्य मृतस्य / * *** *** For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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