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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तओ। निययघरम्मि न चिट्ठइ हिंडइ उजाणकाणणाईसु / कत्थ गया केण हिया कीस निलुक्का सि जपतो // 221 // कह रुवा * मह सुंदरि ! जेण न दंसेसि अप्पयं सिग्छ / हुं हुं दिवा दिट्ठा पसीय मह देसु पडिवयणं // 222 // जंज पिच्छइ लोयं तं तं पुच्छइ, | तेए पिया दिवा ? / एमाई विलवमाणो नीहरिओ ताओ नयरीओ // 223 // उम्मत्तयरूवेणं हिंडतो विविहगामनयरेसु / दुहिओ | दीणो वियणो छुहापिवासाहिं संतत्तो // 224 // कइयावि हु संपत्तो अणेयतावसजणाउरे रम्मे / नाणादुमसयगहणम्मि आसमे विविहफलपउरे // 225 / / तत्थ य से कुलवइणा मणयं संजायसत्थचित्तस्स / नियधम्मो परिकहिओ तस्सवि सो परिणओ ताहे // 226 // गिव्हिय तावसदिक्खं दइयागुरुविरहजायवेरेग्गो / कयकंदफलाहारो घोरतवं चरिउमारद्धो / / 227 // दोमासियतेमासियचउम्मासाइयं | तवं विविहं / काउं पभूयकाल अतुट्टवेराणुबंधो सो // 228|| मरिऊण य उववन्नो परमाहम्मियसुरेसु अंबरिसी / उववन्नमेत्तओ सो SE पुन्वभवालोयणं कुणइ // 229 / / युग्मम् // नाऊण पुव्ववइरं विहंगनाणेण आसुरुत्तो सो। चिंतेइ कत्थ वइरी सा वा मह दुट्ठमहि| लत्ति ? // 230 // दुस्सीला सा पावा अणुरत्तं तह ममं परिचय / आसत्ता कणगरहे सच्चिय तावइरिणी पढमं // 23 // तारिसदुक्खं दिन्नं तइया मह जेहिं दुट्ठसीलेहिं / इण्हि गंतुं दोनिवि हंतव्वाई मए ताई // 232 / / इय चिंतिऊण वेगेण आगओ रोसफुरफुरतो | सो / संलेहणसुसियंगो जत्थच्छइ कणगरहसाहू // 233 // धम्मज्झाणोवगयस्स तस्स पडिमागयस्स रयणीए / पिउँवणठियस्स मुणिणो घोरुवसग्गे कुणइ पावो // 234|| काउं पिसायरूवं उत्तइ निसियकत्तियाहत्थो / मंसाई सरुहिराई संभारियपुवकयवइरो॥२३५॥ 1 निलका=निलीना / 2 त्वया / 3 संतत्तो=संतप्तः / 4 मनाक् संजातस्वस्थचित्तस्य / 5 वेराग वैराग्यम् / 6 अतुट्टै अत्रुटितम्-अनष्टम् / 7 अम्बा| दिषु पश्चदशप्रकारेषु पारमाधार्मिकदेवेष्वेकतमोऽम्बरीषनामा सः / 8 परित्यज्य / 9 सुसिय-शुष्कम् / 10 पितृवनम्-स्मशानम् / 11 उत्कृन्तति / 12 संभारिय संस्मारितम् / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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