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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie सुरसुंदरी | चउद्दहमो परिच्छेओ चरि --* // 120 // -* *एमा कुमर! सुलोयणनामा दइया सुबंधुवणियस्स | सागरदत्तसुयस्स ओ इय भणिए सुमइणा कमसो॥१४६॥ आवाहिऊण तुरए समागओ नियगिहम्मि कणगरहो। मयणसरविहुरियंगो चिंतइ तप्पावणोवायं // 147 // किं मज्झ विभूईए किंवा अंतेउरेण रजेण?। | जो तीए महुकमले छप्पयलील न पावेमि // 148 // जइवि हु लोयविरुद्धं सुकुलुप्पन्नाण एरिसं कजं / तहवि हु तीए विउत्तो सत्तो | धरिउं न जीयपि // 149 / / नाऊण तीए भाव दुईसंपेसणेण चित्तगयं / जइ ताव सावि इच्छइ खिवामि अंतेउरे नियए // 150 // इय चिंतिऊण तेणं पडुया पब्वाइया समाणत्ता / तह कुणसु तुम भयवइ ! जह सा मए पैणइणी होइ / / 151 // तीएवि गंतु वियणे | तह सा आभासिया सुनिउणाए / जह पयडियसब्भावा हिययगय झत्ति उल्लवइ // 152 // उविग्गा विव दीससि कीस तुमं पुत्ति! केण भे कज्ज / आणेमि जेण अइदुल्लहंपि नियमंतसत्तीए // 153 // तीए भणियं भयवइ ! मह हिययं दुल्लहं जणं महइ / निभ| ग्गरोरपुरिसोव्व भोयण चकवट्टिस्स // 154 // जह कावि सारमेई इच्छइ सीहेण संगममलजा / तह चेव अहं भयवइ ! संगं इच्छामि | कुमरेण // 155 / / तीए भणियं इंदपि पुत्ति ! आणेमि मंतसत्तीए। कित्तियमेतं एवं मह मंतो जत्थ विप्फुरइ // 156 // मा पुत्ति ! कुण विसायं जावं मंतस्स तह पैयच्छिस्सं / अञ्जवि य कुमारेणं जह संगो जायए तुज्झ // 157 // तह कायई भयवइ ! न होइ जह मज्झ लाघवं लोए। इय भणिऊण तीए दिना मुत्तावली नियया // 158 / / पव्वाइयाए तत्तो गंतुं कुमरस्स साहियं सव्वं / हरिसियमणेण तेणवि आँणाविय निययपुरिसेहिं // 159 / / अंतेउरम्मि खित्ता सुलोयणा रागमोहियमणेण / अगणिय जणाववायं उल्लंघिय 1 पटुका-पट्वी-चतुरा / 2 प्रवाजिका तापसी / 3 प्रणयिनीवल्लभा / 4 महइ-काङ्क्षति वाञ्छति / 5 निर्भाग्यरोर(रक)पुरुष इव / 6 सारमेयी= शुनी। 7 प्रदास्यामि करिष्यामीत्यर्थः / 8 भानाय्य / 9 जनापवादम् / -*-* *-* // 120 -*-* For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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