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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit सुरसुंदरीचरिश। // 8 // | तवयणाउ नीहरिओ // 21 // तत्तो धणदेवेणं नीओ गेहम्मि भोइओ सम्मं / सत्थस्स मेलिऊणं पट्टविओ निययठाणम्मि // 214 // | पटमो एसो पुण वुत्ततो वित्थरिओ तत्थ पुरवरे सहसा / अइचाई धणदेवो देइ धणं लैक्खगन्नेहिं // 215 // ता जत्थ जत्थ दीसइ धण- परिच्छेओ। | देवो नियवयंसपरियरिओ / अन्नोन पुरलोओ तत्थ इमं विविहमुल्लवइ // 216 // एसो सो धणदेवो चाई भोगी य तह कलाकुसलो। अत्थिजणपत्थिओ जो बरिसइ लक्खेहिं धनोति // 217 // अन्ने पुण मच्छरिणो भणति नियचायगब्बिया तत्थ / किं सैलहिजइ एसो नियपिउलच्छीए खयकालो ? // 218 // तं दाणमिह पसस्सं तं चेव य पोरुसस्स बुड्डिकरं / जं नियपरकमेण विढविय विल| सिजइ जहिच्छं // 219 // जं पुण अञ्जयपजयजणयज्जियअत्थमज्झओ दाणं / परमत्थओ कलंक तयं तु पुरिसाभिमाणीणं // 22 // | भणिय च बप्पविढवियं दव्वेणं को न 'विडिरं कुणइ / सइविढवणविलासणयं जणयइ विरलं सुयं नारी // 221 // एवं जणप्पवायं निसुणित्ता चिंतई उ धणदेवो / सच्चं भणंति एए न हु जुत्तं मज्झ एरिसयं // 222 // ता परदेसं गंतुं विढवित्ता भूरिभूइपब्भारं / | विलसामि जहिच्छाए दीणाऽणाहाण अविसको / / 223 // इय चिंतिय धणदेवो माउपिऊणं सगासमागम्म / विणयपणउत्तमंगो के कयंजली भणिउमाढत्तो // 224 // तुब्भेहिं अणुनाओ गंतूर्ण ताय ! अन्नदेसम्मि / विढवामि भूरिदवं इय इच्छा संपयं मज्झ // 225 // *ता अणुजाणउ ताओ पुजंतु मणोरहा इमे मज्झ / गच्छामि अन्नदेसं वणिजबुद्धीए सयमेव / / 226 // भणियं जणणीए तओ गमणवयणपि दुस्सहं पुत्त!। अच्छउ ता दूरे चिय पुण गमणं अन्नदेसम्मि // 227 / / अनं च अत्थि लच्छी तुह जणएणावि अतित्यागीब्दातृप्रवरः / 3 लक्षगण्यः लक्षसंख्याभिः / / श्लाध्यते / 4 विढविय अर्जित्वा / 5 बप्पो पिता तेनार्जितद्रव्येण / 6 विहिर आभोगम् / // 8 // 7 सह स्वयं / 8 प्रकाश-समीपमागम्य / 9 आरब्धः / 1. अनुजानातु-आज्ञपयतु / " पूर्यन्ताम् / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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