________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IBR-2446398-2015 * 8 *नावियजणे य भंडं पविक्खिरते समुद्दम्मि // 209 / / जलच्छाइयपेरंतं एक आसाइऊण गिरिगडयं / विदलंतफलयनियरा फुट्टा | सहसत्ति सा नावा / / 210 // पञ्चभिः कुलकम् / / अहमवि तत्तो नरवर ! आसाइयफलहयम्मि संलग्गो। अंतेण्णिवेल्लिनोलिज्जमाणलहुमच्छविच्छुरिओ॥२११।। कत्थइ असंखसंखोहखोहिओ जलनिहिम्मि बुटुंतो। कत्थइ गाहगसिज्जंतगोहियामुहविणिम्मुक्को 212 // कथइ नक्कुक्कत्तियसिप्पिपुड्डुप्फिडियमोत्तियाइन्नो। कत्थइ तरंगवेविरविहुमगहणेण रुझंतो // 213 / / अवरावरगुरुल| हरीतरंगवेगेहिं हीरमाणो हं। दिणपंचगेण नरनाह ! पाविओ नीरपेरंतं // 214 // चतसृभिः कलापकम् // रविकरसंपायपणट्ठपउर| जड्डो तओ समुत्तरिउं / काउं सुपक्ककयलीफलाइणा पाणवित्तिमहं // 215 / / परिसुसियनालिएरुग्गएण तिल्लेण काउमभंग / ण्हाऊण | सरोतीरे चंदणतरुपल्लवरसेण // 216 // कप्पूरमीसिएण काऊण विलेवणं पयत्तेण / जाइफलेलासहिय समाणिय पवरतंबोल // 217 / / | वररयणसिलावटे उवविट्ठो चिंतिउं पयत्तो हं / अवो! कह णु अकंडे जाओ धणपरियणविणासो ? // 218 // चतसृभिः कलापकम् // | कह सो महाणुभावो होही भग्गम्मि जाणवत्तम्मि 1 / आसाइयफलओ जइ समुत्तरेज्जा भवे लैंटुं / / 219 // एमाइ चिंतयंतो कइवि हु दिवसाणि जाव अच्छामि। ता अन्नदिणे केणवि उल्लवियं वयणमेयंति // 220 // भो धणदेव ! | महायस! उब्विग्गो कीस अच्छसे एवं ? / तत्तो तत्तोहुत्तं जाव पलोएमि संभंतो॥२२१॥ ताव य दिट्ठो भासुरसरीरधारी पहट्टमुहकमलो। परिहियसखिक्षिणीपंचवन्नवरवत्थसोहिल्लो // 222 // उत्तंसट्ठियभासुरसप्पफणागारचिंधचिंचइओ / अइपिच्छणिजरूवो कोवि 1 आसाद्य प्राप्य / 2 पाहाः जलचारिजन्तुविशेषाः। 3 नकाः जलचरदीबविशेषाः, तदुत्कर्तितशुक्तिपुटोभ्रष्टमौक्तिकाकीर्णः / 4 जट्टा शीतम् / 5 प्राणत्तिम्। 6 भवेत् / 7 सुन्दरम् / 8 खिङ्किणी-किङ्किणी-पण्टिका / 9 चिंचइओ मण्डितः / 6 08248*453 For Private and Personal Use Only