________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | ग्गकरो॥२२९॥ सहिया पियंवयाए तत्थेव ठिया अहंपि तदिवसं / चिंतेती तस्सेव य समागमं गरुयअणुराया // 230|| किं अञ्जवि मणदइओ सहसा हंतूण तं दुरायारं / विजापयावकलिओवि आगओ नेय सो झत्ति // 231 / / वोलीणम्मि य दिवसे रयणि सव्वंपि भगिणिसहिया हं / किं पुण न आगओ सोत्ति जाव चिट्ठामि उबिग्गा // 232|| ताव य खरफरुसगिरं तजितो भीसणो सरूवेण / | निद्धमसिहिसिहावलिपिंगलधम्मिल्लविकरालो // 233 / / जियदसणच्छयदसणो करग्गनरसिरपणच्चणिकरओ। मरुकूवविवरसरिसाऽ5पिंगललोयणसुदुप्पिच्छो // 234 // गलतलविलइयखलखलखलिंतनरमुंडमालियाकलिओ। तडिपुजुञ्जलचंचलनल्लालियदीहजीहालो // 235 / / भीमट्टहासपडिरवउत्तासियसयलसत्तसंघाओ / कसिणो विगरालमुहो वेयालो आगओ तत्थ // 236 / / पञ्चभिः कुलकम् / / | आ पावे ! जं तइया परपुरिसासत्तमाणसाए तुमे / परजुवइलोलुएणं तेण य पाविट्ठपुरिसेण / / 237 / / मह बिहियं गुरुदुक्खं तस्स फलं तेण पावियं ताव / इहि तुमंपि पावसु नियचिट्ठियसच्छह फलंति // 238 // एवं भणमाणो सो हंसिणि ! पित्तुं ममं भयुप्पित्थं / उप्पइओ गयणेण निठुरवयणेहिं तजेंतो // 239 // तिसृभिः विशेषकम् / / मह अणुमग्गविलग्गं अकोसितिं पियवयं सहसा / काउं गयजीवियं पिव भीसणहुंकारकरणेणं // 240 // नेऊण दूरदेस मुक्का गयणाओ तेण पावेण / संचुन्नियंगुवंगा नूणं मरउत्ति बुद्धीए // 241 / युग्मम् / / दइववसेण य पडिया लयावियाणम्मि तम्मि उजाणे। दिट्ठा समंतभद्देण ताहि पुट्ठा य वुत्तंतं // 242 // किं इंदयालमेयं किंवा सुमिणति कत्थ वा पत्ता। कत्थ गओ वेयालो, पियवयाए य किं जायं? // 243 / / मणवल्लहस्स इमिणा हवेज विहिय असोहणं किंचि / मन्ने तेणेव लहुं न आगओ तम्मि सो दीवे // 244 // किंवा मज्झ निमित्तं समागएणं हविज विहियं तु / 1 पर्ष=निष्ठुरम् / 1 तर्जयन तिरस्कुर्वन् / 3 बिलइय=विरचितम् / 4 निःसारिता- / 5 संचूर्णिताङ्गोपाङ्गा / For Private and Personal Use Only