________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरि बारहमो परिच्छेओ // 19 // तावन्नम्मि दिणम्मी परिहियवरणाओ चमरियाहत्था / कयगोरोयणतिलया नाहियसत्थेसु निम्माया // 42 // परिवाइया उ एगा आसीवायं करेत्तु अम्हाणं / पुरओ उवविसिऊणं एवं भणिउ समाढत्ता // 43 / / युग्मम् / / जहरुइयं उवभुजइ इ8 रामिजए इमं सारं। जम्हा न किंचि विजइ अन्न इहलोगवेइरित्तं // 44 // सिरतुंडमुंडणाई परलोगत्थं कुणतु जे केवि / ते वरया वरधुत्तेहि वंचिया विसयसोक्खाणं // 45|| जम्हा जीवर्पयत्थो विजइ अन्नो न देहवइरित्तो / पच्चक्खपमाणेणं अग्गहणा खरविसाणव / / 46 / / पच्चक्खं मोत्तूणं न य अन्न अत्थि इह पमाणं तु / संतेवि पमाणचे न सिज्झइ तेण जीवोत्ति // 47 // पञ्चक्खपुव्वगं जे अणुमाणं इह, न तेण तग्गहणं / न य विजइ तग्गहणे लिंगपि अणिंदियःणओ॥४८॥लोयपवंचणहेउं धुत्तेहिं कयाणि विविहसत्थाणि / न पमाण विबुहाणं | कह तेहि भविज तस्सिद्धी ? // 49 / / ता पंचभूयसमुदयरूवो जीवो न तेसिं विगमम्मि / तस्साभावम्मि कुओ परलोगो जेण य तद| त्थं // 50 // कीरइ अइदुद्धरयं भव्वयसीलपालणाइयं / मूढेहिं सयं नटेहिं तह परं नासयंतेहिं // 51 / / युग्मम् / / गम्मागम्मविभाग | मोत्तुं विसयाण सेवणं कुणह / भक्खह सरसं मंसं पियह सुरं विगयआसंका // 52 // इय तीए बुद्धिलाए वयणं सोऊण कुगइसंजणगं / भणियं मए अहम्मे ! मा मा एवं समुल्लवसु / / 53 / / विबुहजणनिंदणिजं अवियारियसुदरं अजुत्तीयं / को व सकनो एयं तुह भणियं | सद्दहेजावि॥५४॥ भणसि नत्थि जीओ अन्नो देहाओ, अणुवलंभाओ। तमसंगयमच्चत्थं, जम्हा जीवस्स अग्गहणं // 55 / / किं // 99 // 1 नास्तिकशास्त्रेषु / 2 निष्णाता। 3 परिवाजिका-तापसी / 4 आशीर्वादम् / 5 व्यतिरिक्तम्-भिन्नम्-अधिकमिति यावत् / 6 पदार्थः वस्तु / 7 अग्रहणात् अनुपलम्भात् / 8 विषाणं = क्षम् / 9 सत्याप प्रमाणत्वे / 10 अनिन्द्रियत्वतः इन्द्रियाप्रत्यक्षत्वादित्यर्थः / 11 सुराम् / 12 हे अधर्मे ! / 13 अविshell चारितं यावत् , तावदेव सुन्दरमिति तात्पर्यम् / 14 अयुक्तिकम् / 15 श्रदधीत। For Private and Personal Use Only