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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरिअं ***46398-2018-3 बारहमो परिच्छेओ // 98 // * लक्खेमो अम्हि केवलं वाहिं / न उणो पउणीकाउं सत्ता अह माहवी भणइ // 13 // लक्खइ जो किर वाहिं पउणपि हु सो करि| स्सऐ पत्तं / जेणिह दिट्ठा चोरा पहरयमवि देइ सो नणं // 14 // निहुयं हसिऊण तओ सब्वाहिवि सहरिसं समुल्लवियं / सिरिमइ ! इण्हि न छुट्टसि अम्ह सहि जणसु पैउणति // 15 // अन्नं, स तुज्झ जणओ सुपसिद्धो मंतजाणओ सुयणु!। ता वाहिऊण मंतं पउणं सुरसुंदरिं कुणसु // 16 // अह सिरिमईइ भणियं जइ मह जणओ वियाणई मंते / ता किं मह, जइ मिट्ठ खीरं ता किं नु छाणस्स ? // 17 // किंपुण भणामि इकं जइ मह एसा न रूसए सहिया / एस अउद्बो वाही न फिट्टए मंतमेत्तेण // 18 // अह कुमुइणीए भणियं किं पुण कोवस्स कारण एत्थ ? / साहेसु निविसंका विगमो वाहीए जइ होइ // 19 // तो सिरिमईए भणियं जो सो चित्तम्मि वि| लिहिओ दिहो / सो जइ नवरं वेजो वाहिं अवणिज एइए // 20 // अह चित्तपडं सहसा पसारियं पूइऊण तो भणइ / कुमुइणिया! | जइ एवं, ता एयं हंदि ! विन्नेवह // 21 / / ईसि हसिऊण तओ सव्वाहिवि सहरिसं समुल्लवियं / एवंति, पंजलिउडा भणिउं एवं स| माढत्ता // 22 // दक्खिन्ननिहि ! महायस ! चित्तट्ठिय ! सुणसु अम्ह विणत्तिं / तुह दंसणाओ एसा अम्ह सही आउरा जाया // 23 // | ता तह करेसु सुंदर ! जह एसा होइ विगयवाहीया। गुरु मयणामयसंपीडियाण महिलाण तं विजो // 24 // हुंकारं मोत्तूणं ताहि | सकोवं मए इमं भणियं / माए! गहगहिया इव किमसंबद्धं समुल्लवह ? // 25 / / किं वावि अंचित्तेण विन्नविएण गुणो इमेण तु / * चित्तगओ नहि कत्थवि कोवि हु उप्पायए वाहिं // 26 // अह सिरिमईए भणियं तुह चित्तगओ इमो हु जेणेव / तेणेव य अचिना* | एक्स्स / 2 प्रहारम् / / प्रगुणम् नीरोगमिति बावत् / 4 छाण गोमयादि। 5 अपूर्वः / 6 फिट्टए प्रश्यते। 7 विज्जो, वैद्यः। 8 अपनयेत् / / विज्ञपयत / 10 विज्ञप्तिम् / 11 आतुरा रोगिणी / 12 आमयः रोगः / 13 ग्रहगृहीता-भूताद्यावेशपीडिता / 14 अचित्तः अचेतनः / 15 विज्ञप्तेन / **** *-*680** // 98 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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