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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की एगारहमो सुरसुंदरी चरि परिच्छेओ // 97|| हु दंसिजओ अमयभूओ सो // 24 // विहसिय पियंवयाए भणियं मा सहि ! समुच्छुगा होसु / विजाओ ताव साहउ पच्छा सव्वं करिस्सामो // 242 // अविय / जइ ताव कावि हु अहं ताऽवस्सं तस्स संगमेण सुहं / कायव्वं भगिणीए अणुकूलो जइ विही होही // 243 // भणिय | *|| च मए ताव य एयाओ हवंतु अलियभणिरीओ। पियसहि ! तुमंपि संपइ असमंजसभासिणी जाया / / 244 / / अइनिउणं किल चित्त ॐ अम्हे कोऊहलेण पुलएमो / तुम्हे सढहिययाओ अन्नह सव्वं वियप्पेह // 245 // अह कुमुइणीए भणिय एवं एयंति नत्थि संदेहो। | ता सहि ! तुमंपि एवं चित्तं लिहिउं समब्भससु // 246 // अप्पेसु पडं एयं पियंवए ! जेण चित्तमब्भसइ / तुह भगिणी, अह तीए समप्पिओ कुमुइणीइ पडो // 247|| संभासिउं ताहिं पियंवया सा तओ ममं उप्पइया नहग्गे / सहीहि जुत्ता बहुकेलियाहिं अहंपि पत्ता नियमंदिरम्मि // 248 // साधणेसरविरइयसुबोहगाहासमूहरम्माए / रागग्गिदोसविसहरपसमणजलमंतभूयाए // 249 // | एसोवि परिसमप्पइ पियंवयादसणोति नामेण | सुरसुंदरीकहाए एक्कारसमो परिच्छेओ / / 250 // // एगारहमो परिच्छेओ समत्तो।। // 97 // 1 अमृतभूतः। 2 अलीकमणिश्या-मिथ्याभाषिण्यः / 3 सढोठः सद-विषमम् / 4 समभ्यस्य अभ्यासं कुरु / 5 केलिः क्रीडा / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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