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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरि एगारहमो परिच्छेओ // 93 // | क्खस्यणपरं अंसुजलं मोत्तुमारद्धा // 125 / / अह तं तहाविहं पासिऊण परिचिंतियं मए एयं / तं एवं संजाय जं पुर्व सुमइणा भ|णिय / / 126 / / कुसुमायरउजाणे जइया गयणाओ कन्नगा पडिही / तत्तो य सिग्यमेव हि पुत्तेण समागमो होही // 127 / / ता किं | इह पुडाए इमाए वरईए, ताव साहेमि / गंतुं वइयरमेयं जहट्ठियं चेव नरवइणो // 128 / / इय चिंतिऊण तत्तो आसासित्ता सुमहुर| वयणेहिं / आणीया नियगेहे समप्पिया सा सभजाए // 129|| नियपरियणं च सत्वं सरीरसंवाहणाइवावारे / तीए निउइऊणं समा गओ देवपासम्मि // 130 // एवं समंतभद्देण साहियं वइयरं निसामित्ता। विम्हियहियओ राया अह एवं भणिउमाढत्तो // 131 // *अबो! हु अवितहं तं पिच्छह नेमित्तियस्स सुमइस्स / ता पुत्तेण समाण आसन्न सणं इण्हि / / 132 / / ता भी समंतभद्दय ! सिग्धं आणेह वालिय तमिह / जीए पभावेण मए पिक्खेयवो सपुत्तोत्ति // 133 / / वयणाणतरमेव हि समंतभद्देण गंतुमाणीया / सा बालि या विणिज्जियसुरजुबईरूवसोहग्गा // 134 // तीए सरीरसोहं पिच्छिय रमा विचिंतिय अबो!। आगारो चिय सूयइ इमीए सुकुलम्मि | संभूई // 135 // उचियासणोवविट्ठा सा कन्ना अमरकेउनरवइणा / भणिया हिययम्भंतरगुरुसोगुब्वायपंडुमुहा // 136 / वच्छे ! उ| ज्झसु सोयं चयसु भयं जणयनिविसेसस्स / साहिजउ मह एयं कम्मि पुरे तं समुप्पन्ना ? // 137 // कस्स व धूया कह वा इहागया कह व मज्झ उजाणे / पडिया सि नहयलाओ साहेसु सवित्थरं एयं // 138 / / अह सा एवं भणिया गुरुसोया सज्झसेण अभिभूया। उम्मुक्कदीहसासा न किंचि पडिउत्तरं देइ // 139 / / अह पुणरुत्तं रमा पुट्ठाए तीए कहवि संलत्तं / ताय ! एमि न वोत्तुं बहुदुक्खं 1 व्यतिकर वृत्तान्तम् / 2 नियोज्य / 3 आडत्तो आरब्धः। 4 समाणं सम-सहेत्यर्थः। 5 प्रेक्षितव्यः / 6 संभूति: उत्पत्तिः / 7 उब्वाय-उद्वातं-शुकम् / " त्यज / 9 साहिज्जउ कथ्यताम् / 10 चएमिणशक्नोमि / // 93 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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