________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * उढिओ तत्तो // 82 // पत्ताए रयणीए निम्भरसुत्ते य सयलसिन्नम्मि / गहिऊण तमाभरणं पासाई पलोयणमाणा // 8 // निहुयगईए * चलिया भएण कंपंततणुलया गाढं / वंचिय पहिरिए हं नीहरिया ताओ सिन्नाओ॥८४॥ चित्तूण य एगदिसं चलिया घणतरुवणस्स मज्झेणं / निसुणती बहुसावयभीसणसद्दे बहुविही(ह?)ए // 85 // युग्मम् / / पवणाकंपियपायवचलंतपत्ताण सणसणारावं / सीहोरालिसमाणं मन्नती वेविरसरीरा // 86 // वेगेण य गच्छंती घणधयाराए तीए रयणीए। दीर्हरघणतणओच्छाइयाए विसमाए भृमीए।८७। अवियाणियपरमत्था झडत्ति पडिया य एत्थ कूवम्मि / पिययम ! कयबहुपावा जीवा इव घोरनरयम्मि // 88 // युग्मम् // भविय| व्वयावसेणं न मया गंभीरजलनिबुड्डावि / अगंडस्स तडिं पाविय तत्थ निलुका अहं राय! |89 // मरणे उवद्विएवि हु सील संरक्खियति तुट्ठमणा / अप्पाणं सकयत्थं मनंता सुरहभयमुक्का // 90 // गाढं छुहाभिभूया चत्तारि दिणाणि एत्थ कूवम्मि | परिचत्तजीवियासा ठिया अहं सरणपरिहीणा // 91 / / अञ्ज पुण कलयलेणं सिबिरं आवासियति नाऊण / सुरहासंकाए पुणो समाउला नाह ! संजाया // 92 // तत्तो कूवपबिटुं तुम्ह नरं पासिऊण सुट्ट्यरं / भीयाइ पुच्छियाइविन उत्तरं किंचि मे दिनं // 13 // पुणरवि य तुम्ह नाम सोऊणं विगयअन्नआसंका / हरिसभरनिब्भरंगी उत्तरिया देव! कूवाओ॥१४॥ एवं मएऽणुभूयं सरणविहुजाए तुम्ह विरहम्मि / निसुएण जेण जाणइ दुक्खं पासट्ठियाणपि // 95 // इय कमलावइभणियं आयनिय अमरकेउनरनाहो। बाहजलाविलनयणो गुरुसोगो भणिउमाढत्तो // 16 // किं देव ! इत्थ कीरइ निहुर्य=निःशब्द / 2 प्राहरिकान् यामिकान् / 3 ओराली दीर्घमधुरध्वनिः। 4 दीर्घघनतृणावरछादितायाम् / 5 निबुहा=निममा / 6 अगडो-अयडो कूपः / 7 स्वकृतार्थम् / 8 आयन्निय आकर्प श्रुत्वा / For Private and Personal Use Only