________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता अन्नभवविढते दुक्खम्मि समागयम्मि को सोगो। किं वावि विलविएणं (स)सरीरायासभूएणं? // 21 // एत्तो उ समासने अच्छइ अम्हाण आसमो रम्मो / आगच्छ सुयणु ! अणुचियमेयं ठाणं जओ तुज्झ // 22 // वायइ सीयलपवणो एत्थ ओ तं अभिकणवपसूया सि / सुकुमालसरीराए मा होञ्ज विरूवयं किंचि // 23 / / इय भणिय तावसीए नीया हं आसमम्मि रम्मम्मि / पडिज ग्गिया य सम्मं निकारणवच्छलत्तेण // 24 / / अह कइवयदिवसेहिं संजाया सत्थदेहिया मणयं / अन्नम्मि दिणे नीया तीए हं कुल| वइसमीवे / / 25 / / तीएवि पुब्बभणिओ वुत्ततो साहिओ कुलवइस्स / करुणापरेण तेणवि अणुसट्ठा महुरखयणेहिं // 26 // वच्छे ! इह | संसारे सुलहाई एरिसाई दुक्खाई / अकयम्मि सुहनिमित्ते धम्मे परलोयबंधुम्मि // 27 // जायंति दूसहाई जेणं चिय एत्थ दुसहदुक्खाई / तेणेव चत्वरजा वणवासमुवागया धीरा // 28 // एवं भणमाणस्स उ कुलवइणो तीइ तावसीइ अहं / कन्ने होउं भणिया भयवं वरनाणजुत्तोऽयं / / 29 / / तो पुच्छ इच्छियत्थं भणियाए ताहि विणयपणयाए / पुट्ठो मए महायस! केण हिओ नंदणो मज्झ // 30 // किं जीवइ अव मओ पिक्खिस्समहं कयाइवि नवत्ति / अह भणिय कुलवइणा सम्म दाऊण उवओगं / / 3 / / |वच्छे ! उच्छंगत्थो तुह तणो अवहिओ उ देवेण / पाणविओयणहेउं पुरविरुद्धेण कुद्धेण // 32 // वेयड्डगिरिनिउंजे नेऊण सिला| यलम्मि विउलम्मि / मुक्को छुहाभिभूओ किल किच्छेणेस मरउत्ति // 33 // अह कहवि विहिवसेणं समागओ तत्थ नहयरो एको। | नियभारियासमेओ तेण य पुत्तोत्ति सो गहिओ // 34 // खयरस्स तस्स गेहे वुडिं जाही सुहेण, तत्तो य / संपत्तजोव्वणो सो मिलिही | तुह हथिणपुरम्मि // 35 / / एवं च तेण भणिए पणट्ठसोगा नरिंद ! जाया हं / फलमूलकयाहारा विणयपरा तावसिजणस्स // 36 // | विठतम् अर्जितम् / 2 चत्तरजोम्स्यक्तराज्यः / / हिओबहुतः / 4 मओ-मृतः / 5 विओयण पियोजनम / निकुजः वनम् / 7 विपुलं विशालम् / | कृश्ण काप्टेनैष बालको म्रियतामिति 'विवार्थ' इति शेषः / APNARARHEARTHABARBAR For Private and Personal Use Only