________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी अट्ठमो परिच्छेओ। चरि। // 65 // यदुक्खाई। रागविमोहियचित्ता कज्जाकजं अयाणता // 74 // सारीरमाणसाणं दूसहदुक्खाण कारण पढमं / इह परलोए घोरो रागो चिय सयलजीवाणं // 75 // रागंधा इह जीवा दुल्लहलोयम्मि गाढमणुरत्ता / जं वेइंति असायं कत्तो तं हंदि ! नरएवि ? // 76 // वल्लहविओयतैविया असमंजसर्चिट्ठियाई कुणमाणा। नरए नेरइया इव निच्च चिय दुक्खिया होंति // 77 // वहबंधमारणाई | लहंति रागेण मोहिया जीवा / वर्चति दुग्गईए सहति विविहाई दुक्खाई // 78 // रागो हि दुक्खरूवो रागो चिय सयलआवया| हेऊ / रागपेरद्धा जीवा भमंति भवसागरे घोरे // 79 // ताव चिय परमसुहं जाव न रागो मणम्मि उच्छरइ / हंदि ! सरागम्मि मणे | दुक्खसहस्साई पविसंति // 8 // - एमाइ चिंतिऊणं धणदेव ! मए इमं तु वञ्जरियं / भो चित्तवेग ! इण्हि मा कीरउ कोवि सोगोत्ति // 81 // जं एसो संसारो | एरिसदुक्खाण निययआवासो / पत्ताए आवयाए तेण विसाओ न कायवो // 82 / / जरमरणरोगवल्लहविओगबहुलम्मि एत्थ संसारे। जम्हा सकम्मजणियं जायह जीवाण दुक्खति // 8 // तो भणइ चित्तवेगो भद्द ! विसाओ न कोवि मह अन्नो / एकच्चिय मह चिंता | कुणइ मणे दूसहं दुक्खं // 84 // सा कह वरई होही नीया नहवाहणेण रुयमाणी / जीवई व नवा इहि दटुं मह तारिसमवत्थं ? | // 85 // एवं च जाव साहइ सो खयरो मज्झ भद्द ! धणदेव ! / एत्यंतरम्मि निसुणसु जो वुत्ततो तहिं जाओ // 86 // एक्को कमलदलऽच्छो पिहुवच्छो सुरवरो तर्हि सहसा / ओइन्नो गयणाओ उजओइंतो दिसावलयं // 87 // दटुं समागयं तं विय१ वेदयन्ति अनुभवन्ति / 2 असात-दुःखम् / 3 तविया तप्ताः / 4 चेष्टितानि-व्यापाराः / 5 परदा पीडिताः 6 प्रादुर्भवति / 7 पृथुवक्षाः / उद्योतयन् / 8-26-3683*688** * * // 65 // *-* For Private and Personal Use Only