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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी | सत्तमो परिच्छेओ। चरिअं। // 60 // जाव य कित्तियमे खेतं वच्चामि वल्लहाइ सह / ताव य तीए भणिय उदरे पीडा ममं जाया // 184 // र्थक सव्वसरीरं हियए मूलं सुदूसह एइ / ता सामि ! कुण परित्तं सकेमि न गंतुमहमिहि / / 195 / / तत्तो य मए भणिय सुंदरि! सुकुमालदेहिया तं सि। रत्तीए नेव सुत्ता वायइ अइसीयलो वाओ // 186 // तेण तुह उदरपीडा जाया ता मा करेहिसि विसायं / पउणीकरोमि सिग्छ | ओरिउं इह निउंजम्मि // 187 / / एवं भणमाणो हं ओयरिओ एत्थ वणनिउजम्मि / एत्थ निवाए दइया पवेसिया कयलिगेहम्मि // 188 // घसिऊण अरणिक8 अग्गी पजालिओ मए पच्छा / संसेवियं सरीरं बहुहा तत्तो मए मणिय // 189 // जाया सत्थसरीरा सुंदरि ! बच्चामु इण्हि नियठाणं / तत्तो य तीए भणियं पिययम! एवं करेमोत्ति // 190 // एवं दोवि जणाई नीहरियाई तु कयलि| गेहाओ / भो चित्तवेग! तत्तो दिह्रो सहसा तुम एत्थ // 191 // एसा हु कणगमालाभगिणी उ पियंगुमंजरीनामा / तह उवयारकैलाओ संपत्ता मित्त ! एवंति // 192 / / तं जं तुमए पुढे तं सव्वं साहियं मए एयं / भो सुप्पइट्ठ! एवं बजरियं चित्तगइणा ओ // 19 // तत्तो य मएँ भणियं निग्धिणहियओ न अस्थि मह सरिसो / जेण सकारएण पवेसिओ मित्त ! विसमम्मि // 194 // तुह पुण महाणुभावत्तणेण परकजकरणनिरयस्स / अभिवछियत्थसिद्धी नियपुनपभावओ जाया ॥१९५॥ता मित्त? तुह सरिच्छो निकारणवच्छलो जए नैनो / अइदुल्लहोवि जेणं दइयाए समागओ विहिओ // 196 // तह जीवियपि दिन्नं तुमए मह एरिसं करितेण / |ता मित्त ! तुम मोत्तुं उवगारी नत्थि अन्नोति // 197 // तत्तो य चित्तगइणा भणियं किं उवकयं मए तुज्झ / तं चेव कयं सुकयं 1 कियन्मात्रम् / 2 परिश्रान्तम् / 3 प्रगुणीकरोमि स्वस्थौकरोमि / 4 अवतीर्य / 5 निवातः आश्रयः / 6 फला। . मया चित्रवेगेण / seile विषमेकटे / नन्नो-नान्यः / // 6 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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