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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * पुव्वगउरवेणेव / तत्थ तुमं परिणिस्सं अम्मापीईणणुमाया (माओ)॥१७०॥ एवं च कए वल्लहि ! सैलाहणिज तु होइ सबंपि / अनह पुण विहियम्मि उभयकुलं मइलिय होइ // 171 // ततो य तीए भणिय जमिह तुम किंचि आणवेसि मए / तं सव्वं कायव्वं नवरं पिय! सुणसु वित्तिं // 172 // जीवियसंदेहेणं कहवि मए अज नाह ! संपत्तो / मोत्तूण तुम इण्हि कत्थवि सक्केमि नो गंतुं | // 173 / / तावच्चिय मह जीयं जाव तुम नयणगोयरे वससि / तुह दंसणरहिया पुण झत्ति य पाणेहिं मुंचामि // 174|| जंपि निमि संति नयणा एत्तियमेतपि दसहं मन्ने / किं पुण जं बहुदिवसे तुह विरहे नाह ! अच्छिस्सं 1 // 175 // ता नाह ! जत्थ वच्चसि अणु| गंतव्वं मएवि तत्थेव / एवं च ठिए कजे जं कायव्वं तय भणसु.॥१७६॥ अन्नं च / सट्ठाणे पत्ताए पाणिग्गहणं भविस्सई मज्झ / एवंविहआसाए सगिर्ह वच्चामि जइ नाह ! // 177 // एत्तो य मज्झ जणओ BI भणिओवि हु जइ न वच्चई कहषि / जलणप्पहेण रना, कणगपहं मोत्तु नियनयरे // 178 / / ता मह का होज गई तुमए सह दंसणंपि न हु होजा / अच्छउ पाणिग्गहणं दूरे चिय मह मणाणदं // 179 // तिसृभिः कुलकम् / ता किं बहुणा वल्लह ! मेल्लामि तुमं न ताव | हत्थाओ / अनं जं कायव्वं तं चिय मह आणवेसुत्ति // 180 // भो चित्तवेग! एवं तीए भणिए मएवि संलत्तं / जइ एवं ता सुंदरि! सिग्य पउंणा भवेसुत्ति // 18 // वियलइ जाव न रयणी पेक्खणगक्खित्तमाणसो जाव / नहवाहणपमुहो इह लोगो, ता वच्चिमो सुयणु!॥१८२॥ भणियं च तीए एसा पउणा चिट्ठामि नाह ! तुह पुरओ। तत्तो उप्पइओ हं सहसा गयणम्मि सह तीए॥१८॥ 1 पूर्वगौरवेण-पूर्वादरेण / 3 श्लाघनीयम् / 3 मलिनम् / 4 विज्ञप्तिम् / 5 जीवितम् / 6 एतावन्मात्रमपि / 7 मुञ्चामि / 8 संलपितम्-उक्तम् / प्रगुणा / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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