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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीएवि सव्वं कहियं मह पिउणो असणिवेगनामस्स / तत्तो य हरिसिएण बजरियं तेण एवं तु // 112 // आसि मह गरुयचिंता धूया | जं पुरिसवेसिणी जाया / न य इच्छइ किंचि वरं कहमेयमहं करिस्सामि // 11 // सुंदरमेयं जायं जाईसरणं इमीए जं जायं। अम्हं | चिय अन्भुदओ उम्भिन्ने पाणियं पडियं // 11 // ___अन्नं च। पुरिसेहिं मज्झ सिटुं हत्थिभए जेण मोइया एसा। सो भाणुमइपुत्तो चित्तगई नाम वरकुमरो॥११५॥ तस्सेव देमि एवं जइ इच्छा अस्थि तम्मि एआए / तत्तो चंपगमाला हरिसियचित्ता इमं भणइ // 116 // जोगो चिय सो कुमरो इमाइ पवराइ मज्झ धूयाए। एईएवि संजाओ अइगुरुओ तम्मि अणुराओ // 117 // किंतु निसुणेसु सामिय! रनो कणगप्पहस्स एयस्स / भाणुगइणो य रण्णो परोप्परं गरुयवेति // 118 // जलणप्पहकज्जेणं, सुप्पसिद्धं चेव तुम्ह एयति / ता कह एही इहई चित्तगई पाणिगहणत्थं // 119 // धूया सयंवरा जइ पेसिजइ तम्मि चेव नयरम्मि। एवं न होइ पिययम ! आणंदो मज्झ हिययस्स // 120 // जओ। एसा एका धूया वल्लहिया ता इमीए वीवाहं / जइ नवि पेच्छामि अहं ता किं मह जीविएणंति // 121 // एवं चंपगमाला मह जणणी जाव तत्थ उल्लवइ / ताव य चंदणनामो मह भाया आगओ भणइ // 122 // किं अच्छह वीसत्था तुम्हे इह ताय ! निर्विचिंतति / एवं नयरं ताव य सव्वंपि हु आउलीभूयं // 123 // तत्तो भणियं पिउणा केण व कज्जेण पुत्त ! जाणासि / अह चंदणेण भणियं इय वत्ता ताव नयरम्मि // 124 // किल कणगप्पहरन्नो जिणभवणे लंघियम्मि कुद्धेण / विजाणं 1 उद्भिन्ने अकुरितमात्रे पानीय जलवृष्टिर्यथा गुणावहा तथेत्यर्थः / 3 निर्विचिन्ता निश्चिन्ताः / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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