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सुखसा
॥३५॥
विचित्र चंधुश्राना समूहनी कांतिए करीने मनुष्योने बरोबर संध्यानो चम उत्पन्न कर सर्गजो. नारा श्रने धूपिया थकी नीकलता मेघना समूह सरखा धूपना धूमाडाए करीने व्याप्त एवा (नामसारथीना महेलमांते मुनि रूपने धारण करनारा देवताए प्रवेश कस्यो.)॥३॥ श्रांगणामां कस्तूरीवडे बीपीने मुक्ताफलोथी स्वस्तिक (साथिया) काढेला, तेम ज सुव
'विचित्रचंदयराजिकांत्या, संध्याभ्रमं साधु दंधऊँनानाम्॥ "निषेवितं, धूपघटीप्रसूतैः, पयोददैरिव धूपधूमैः ॥ ३ ॥ कैस्तूरिकागोमयकां विधाय, मुक्ताफलैः स्वस्तिकितं प्रवेशे॥ सौवर्णसत्पिप्पलपत्रमालाश्रितोत्तरंगं वरमंगलाढ्यम् ॥४॥ "जित्वा विमानं निजया 'श्रिया यत्, ध्वजानुजारिवं नृत्यईम्॥ail
सुविस्मयस्मेरमुखो "विवेश, मुनिः सुसौधं सुलसाश्रितं तत् ॥५॥ ना सरखाश्रेष्ट पिंपलाना पांदडानी मालाना तोरणवाला अने उत्तम मंगल पदार्थों थी युक्त एवा ( नागसारथीना महेलमां ते मुनि रूपने धारण करनारा देवताए प्रवेश कस्यो.)॥४॥ तेमज जे पोतानी समृद्धिथी वैमानने पण जीतीने ध्वजा रूप हस्तना
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