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सुलसा
सागसश्जो
॥३४॥
उनां नेत्रोने (पोताना तेजथी ) बंध करतो, वली सुगंधना समूहथी पर्वतनी गुफामा क्रीडाने विषे श्रासक्त थएला वनचरनां जोडलांने पोताना सामुं जोवरावतो ते नैग मेषी देव सुलसा प्रत्ये आवतो हतो.॥४७॥"शुं इंजना हस्तकमलमांथी श्राकाशने विषे वज पडी गयुं ? अथवा अहह ! शुं सूर्यथी व्रष्ट थएला किरणोना समूह पडे ?"
__सुरपतिकरांनोजावेज पंपात 'किमंबरे, इंददद किमु वा सूर्याच॑ष्टाः पतति कैरोल्कराः॥
ति कथमपि झाँतो देवो नरैः से सनीडगो,
रिति पथिवीपी प्रौपत्तनूकृतदेहरुक॥४॥ एम अनेक प्रकारे करीने उपरथी पासे श्रावतो अने मनुष्योए महा कष्टथी जाणेलो तथा अल्प करी देहनीकांति जेणे एवो तेनैगमेषी देव तत्काल पृथ्वी उपर श्राव्योभए । श्त्यागमिक श्रीजयतिलकसूरि विरचिते सम्यक्त्वसंजवनानि महाकाव्ये
सुलसाचरिते हरिणेगमेषिसुरागमो नाम नीतिय सर्गः॥
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