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सुलसा
गंधर्व खरना गर्वे करीने जीतवानी श्छा करनारी सरस्वती देवी तेमनुं समानपणुं पासर्गरलो. मवाने आज सुधी पण पोताना हाथमांथी वीणाने मूकती नथी. अर्थात् राजगृह न गरमा रहेनारा गंधर्व लोको गायनकलामां बहु ज प्रवीण . ॥ ३ ॥ जे राजगृह न गरने विषे नटुवाए नाट्यरसे करीने जीतेलो, क्रोधथी काढी मूकेलो, जस्मने धारण करनारो अने त्रण नेत्रवालो एवो नटुवानो अधिपति शंकर (महादेव ) पण स्मशा ||
'निष्कासितो नस्मनृतो विरूपादोऽपि प्रेकोपेन नटेश्वरोऽपि॥ नेटैर्जितो नाट्यरसेन यत्र, स्मशानवासी "गिरिशो बनूव ॥२४॥ स्वेदांबुधाराकलिता मृदंगधोंकारकारा जिनमंदिरेषु॥
मार्दगिका यत्र नेजति वीस, सदैव मेघा इंच 'दिव्यदेहाः॥२५॥ नवासी थयो. अर्थात् था नगरना नटुवा पण पोताना काममां श्रतिशे निपुण ॥४॥ जे राजगृह नगरने विषे परसेवानी धाराए करीने जीजाइ गएला अने मृदंगना ॥ १३ ॥ धोकार शब्दो करनारा, तेम ज मेघना सरखा दिव्य देहवाला (मनोहर स्वरूप वाला) मृदंगी, जिनमंदिरने विषे निरंतर निवास करे डे. अर्थात् राजगृह नग
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