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सुखसाण हथी ना पाडीने कह्यु के, तुं पादप्रक्षालन पूर्वक अर्थात् म्हारा पग धोवा पूर्वक मने सर्गको.
थादरथी जोजन कराव्य. ॥५॥ ए प्रकारे याचना कस्यां बता पण ज्यारे सुलसाए । सत्पात्र एवा अंबडने जोजन न आप्यु, त्यारे विलद थएलो अंबड, ते नगरथी बहार चाल्यो गयो. ॥५ए। पनी चार मुखथी सुंदर, पद्मासन उपर बेठेला, हंसवाहन युक्त,
याचितापि न सा देत्ते, यदा सत्पात्रनोजनम् ॥ "विसतः स तदा तेस्मानिर्ययौ नंगराईदिः॥५॥ ब्रह्मरूपमेथो कृत्वा, चतुराननसुंदरम् ॥
पद्मासनसमासीनं, हंसवादनसंयुतम् ॥ ६ ॥ हाथमां कमंगल तथा अक्षसूत्र धारण करनारा, जटारूप मुकुटथी सुशोनित, सावित्रि स्त्री सहित अने चार मुखथी मनोहर एवा ब्रह्माना रूपने धारण करीने राज|| गृह नगरना पूर्वधारनी समीपे गतानुगतिक (गामरीया प्रवाहनी समान ) लो-18|| ॥७॥ कोए स्तुति करेलो ते अंबड, वेदमार्गने निरुपण करतो बतो बेठो. ॥६०॥६१॥६॥
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