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सुलसा
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ब्धियी व्याप्त अने सर्वानी श्राज्ञाने निरुपण करनार एवो अंबड नामनो परिवा-सहो. जक त्यां श्राव्यो. ॥ ३४ ॥ ३५ ॥ ३६ ॥ जिनेश्वरने प्रदक्षिणा करीने हर्षित रोमवाला तथा कस्यो ठे प्रणाम जेणे एवा ते अंबडे बन्ने हाथ जोडीने प्रजुनी था प्रमा-|
आकाशगामिनीसिध्विविद्याविशारदः॥ अनेकलब्धिसंपन्नः, सर्वज्ञाशाप्ररूपकः ॥ ३६॥ विशेषकम् 'जिनं प्रदक्षिणीकृत्य, दैर्षरोमसमन्वितः॥ केतप्रणामः संयोज्य, कैरावे समस्तवीत् ॥ ३७॥ नानाधिव्याधिविध्वंसविधानैकमहौषधे ॥
कैल्याणकुंन नंद वं, प्रातिदायैर्विराजितः॥३०॥ ये स्तुति करी. ॥ ३७॥ नाना प्रकारनी श्राधि ( मन संबंधी पीडा) आने व्याधि | ( शरीर संबंधी पीडा) ने नाश करवाने एक महौषधि रूप तथा कल्याणना कुंजरूप एवा हे प्रजो! था प्रातिहार्यवडे विराजीत एवा तमे श्रानंद पामो. ॥ ३० ॥
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