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मूल विनानुं वृक्ष तो सूका जाय . ॥ ३२ ॥ ते कारण माटे हे नव्यजनो! कोटि नवमां पुर्खन एवा मनुष्य जवने अने संपूर्ण एवी सुगुरु विगेरेनी सामग्रीने पण पामीने निरंतर श्रावक धर्मने विषे श्रादरवाला था.॥३३॥ए प्रकारेसनामां श्री महा-MI वीर प्रनु धर्मदेशना आपे, तेवामांप्रथमथी श्रावकपणाने अंगीकार करनारो, त्रिदंग
तेदेदो प्राप्य मानुष्यं, उष्प्रापं नवकोटिषु॥ सामग्रीमपि संपूर्णा, श्रीधर्मे सैंदाहेत ॥३३॥ इत्यादिशति श्रीवीरे, सनायामबडस्तैदा॥ पूर्वापन्नश्रावकत्वः, परिव्राजक आययौ ॥३४॥ "त्रिदंमकुंमिकादस्तो, धातुरक्तांबर शिंखी॥
₹षी 'पीवधरः काम, मंत्रिकावारितातपः॥ ३५॥ तथा कममलने धारण करनारो, गेरु विगेरे धातुथी रक्त वस्त्रवालो, शीखाधारी, ब्रह्म-II
चारी, मानना श्रासनने धारण करनारो, थत्यंत, उत्रीथी निवारण कस्यो ताप जेणे || Vएवो, आकाशगामिनी सिजि अने बीजी बहु विद्यामां प्रवीण, अनेक प्रकारनी -Mail
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