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सुखसान
विकणाना पवन श्रने चंदनना रस, तेमज वीजा अनेक प्रकारना उपचारोए करीने समो ,
बहु काले चेतनाने पमाडेली ते सुलसा, फरीथी या प्रमाणे विलाप करती उती रुदन ॥३१॥
करवा लागी. ॥ ११॥ अरे ! पुत्रना शोकनो नाश करनारी, सखीना सरखी म्हारी मूर्छना कोणे हरण करी? हे सखि मृर्वे! त्हारा विना हुँ पुत्रना शोक रूप था असह्य
व्यजनानिलचंदनवैरुपचारैरेपरैरनेकधा॥ गमिता सुचिरेण चेतना, "विलपंतीति सरोद सा पुनः॥११॥ मैम केन हैता हूँ मूर्चना, सुतशोकापनुदा सेखीसमा ।
अविषह्यमिदं सदाम्यहं, सखि मूवतीमते कैयम् ॥१२॥ बैत तेऽपि मृता मैदंगजा, अहमद्यापि नवामि सुंस्थिता॥
सहसा यदि नो" धौनवं,तदेही कग्निीस्मि "निश्चितम् ॥१३॥ उखने केम सहन करी शकुं? अर्थात् पुत्रना मरणतुं फुःख मू थी अथवा मरणथी।
विस्मृति पामे . वीजाथी विस्मृति पामतुं नथी.॥ १२ ॥ अरे! मने एज खेद थाय । Maa के, ते म्हारा पुत्रो पण मृत्यु पाम्या अने आज सुधी हुँ खस्थपणे रहेली . all
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