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सुलसा
सर्गरमो.
सर्ग ५ मो.
(वैतालियवृत्तम् ) पली पृथ्वीपति श्रेणिक राजा, ते प्रिया (चिबणा) ने अन्नयकुमार विगेरे सुजटो सहित पोताना घरने विषे मूकी पोते एकलो पुत्रना मृत्युनी वात कहेवा माटे ना
अथ भूमिपतिविमुच्य तां, देयितामात्मगृहेऽनयादिनिः॥ सुनटैः सह नागमंदिरे, सुतवार्ता गदितुं स्वयं ययौ ॥१॥ उपविश्य यथोचितासने, पंरिपिंचन्नयनांबुनिनुवम् ॥ युगपन्मरणं तेनूरुहामवदन्नागपुरः स मंदवाक् ॥२॥ अपतत्प॑विपातसंनिनं, सहसॉकर्ण्य वचस्तैदीयकम् ॥
'विनिवर्हितमूलपादपः, किल नागो गतचेतनो नुवि॥३॥ गसारथीना घर प्रत्ये गयो. ॥१॥ त्यां योग्य आसन उपर बेसीने नेत्रजल (आंसु) श्री पृथ्वीने सिंचन करता उता मंदवाणीवाला ते श्रेणिक राजाए, नागसारथिनी बागल तेना सर्व पुत्रोनी एकी वखते थएला मृत्युनी बात कही. ॥२॥ ए प्रकारे उचिंता
॥६ए।
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