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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीजो को देव के दानव ? ॥ ५ ॥श्रा इंश तो नहिं ! कारण के, ते तो विस्फोटकना सरखां हजार नेत्रोए करीने खराव देखाय ! वली चंडमा पण नहीं ! कारण के, ते पण कलंकवालो . तेमज अश्विनीकुमार पण नहीं ! कारण के, ते तो वे जणा साथेज चालनारा होय . ॥ ५५ ॥ था सूर्य पण नहीं ! कारण के, ते तो। अयं न शक्रः 'पिटकैरिवादिनिः, सहस्रसंख्यैः सं यतोऽस्ति कुत्सितः॥| मैं चापि चंः स यतः कलंकवान,नै चाश्विनेयो चिराविमौ यतःपणा अयं न सूर्योऽपि यतः स तापनो, न कामदेवोऽपि यतोऽयमंगवान् ॥ कथं घटॉमेति तु कत्तिकासुतो, यतः से पैइनिर्वदनैनयंकरः ॥६॥ परे सुराः केऽपि न चारुरूपिणोऽसुरा समस्ताः सूकरालमूर्तयः॥ नपेत्य जानीत तदस्य संनिधौ, कएप "देवो ननु संख्यदृशः ॥६॥ ताप करनारो ठे. तेमज कामदेव पण नहि ! कारण के, आ पट्टने विषे चित्रेलो तो अंगवालो . अर्थात् कामदेव अंग रहित ठे. वली कृत्तिकानो पुत्र (कार्तिक स्वा-2 मी) तो घटेज केम ? कारण के, ते तो ब मुखथी जयंकर देखाय डे.॥ ६० ॥ बीजा For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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