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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुखसा ॥५॥ पठी फरीथी प्राप्त थले चेतना (स्वस्थता) जेने, तथा मनमा रहेली सर्व वात प्रगट सर्गभ्यो. करवावडे श्रादरवाला श्रेणिक राजाए अजयकुमारने कयु के,हे वत्स! समस्त राज्यमां म्हारे प्राप्त भएला कार्यने करनारो तुं एक ज ,पण वीजो कोइ नथी.॥३६॥ हे पुत्र! था लोकने विषे त्हारा सरखा पुत्रे करीने दुं फुःख रहित थयो ढुं. तथापि शुं करूं ? अथाह राजा पुनरात्तचेतनो, मनोगताविकरणेन सादरः ॥ स्वमेव "मे वत्स "विरूढकार्यकृत, समस्तराज्ये न परोऽस्ति कश्चन॥३॥ त्वया निरस्ताधिरिदास्मि सूनुना, परंतु किं वत्स केरोमि मेऽधुना ॥ स्वयं परिवाजिकयोक्तरूपया, हृतं मनश्चेटकराजकन्यया ॥३७॥ ततः सुनंदातनयो नयोचितं, वचो बनापे स मनीषिशेखरः॥ विषीद मा तात नेज प्रसन्नतां, प्रदीयतां दूंत इमं नृपं प्रति ॥३॥ कारण के,ह्मणां पोतानी मेले परिवाजिकाए कह्यु ने स्वरूप जेणीनुं एवी चेटक राजानी ॥५॥ पुत्रीए म्हारं मन हरण करेलुं बे. ॥३७॥ पड़ी मनस्वी (बुद्धिवान् ) पुरुषोमां श्रेष्ठ एवा ते सुनंदाना पुत्र अजयकुमारे नीतियुक्त वचन कयु के, हे तात! खेद न करो. प्रसन्न For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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