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पडीने कडुं. हे देव! तमे उदासिन सरखा केम देखाउँ डो? अने तमारं मन महा चिंताथी व्याकुल केम डे ? ॥ ३३ ॥ हे जगत्ने विषे एक वीर ! मरण पामवाने श्वता एवा कया पुरुषे तमारी नखंघन न थाय एवी आज्ञा उलंघन करी ? ते पुरुष, म्हारा शीघ्रगति करनारा बुद्धिरूप बाणोए करीने ताडन कस्यो बतो कणमात्रमा पण
अलंघनीया ननु केन लंधिता, मुमूर्षुणांशा जगदेकवीर ते॥ से बुझिवाणैनिदतो मैमोशुगैर्वशंवदस्ते नँवतात्दैणादेपि॥३४॥ विशेषरूपातिशयेन शालिनी, नरेंजकन्यामपरां मनोहराम् ॥
चिकीर्षसे वौथ मदीयमातरं, प्रंसीद कार्य मैम शाधि सेत्वरम् ॥ ३५॥ पहुं तमारे वश्य ढुं, एम कहेनारो था. ॥ ३४ ॥ अथवा हे तात ! अत्यंत श्रेष्ठ रू-Tell
पथी सुशोजित अने मनोहर एवी बीजी राजकन्याने म्हारी माता करवाने श्छो हो? अर्थात् कोई रूपवंती राजकन्याने परणवानी श्छा करो बो? हे पिता ! प्रसन्न था बने मने तत्काल चिंतवेला कार्यनी थाझा करो. ॥३५॥
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