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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाणणं । चोरवहणाई दटुं वहणाई पक्खरिजंति ॥९॥ पुर्वि कयसम्माणा तह तजिजंति सुहडसंघाया। संसिर्जति पुणो जे दनिवडिया समरसंघद्दे ॥१०॥ सण्णद्धबद्धकवया रणरसिया उल्लसंतमुहसोहा । तिक्खाई आउहाई खिप्पं गिण्हंति नियय करे ॥११॥ तह पंजरेसु के वि खंभग्गठिएसु आरुहंति भडा । द8 नटे तक्करवहणे तह हुंति सुत्थमणा ॥१२॥ निजामएण भणिया सवे सबायरेण भिच्चगणा । नियनियवहणेसु दढं नियनियकिच्चेसु लग्गति ॥१२॥ है। तहा हि-मुच्चंति के वि हरिणीओ के वि सारंति हरिणिगंठीओ। के वि गम्भिल्ला आवल्लगाई वाहिति अणवरयं ॥१॥ Pावत्तवईवयणेणं पवहणच्छिड्डावलोयणत्थं तु । खारवेया पुणो पुण बुड्डुति जले तरणनिउणा ॥१५॥ सुकाणगाई चालिंति के विP सुंकाणकिरियनामाणो । अण्णे पुण कम्मयरा कुणंति गामत्तमपमत्ता ॥१६॥ इय दाहिणपवणाउरियाई जणनिवहजणि-18 है| यसुक्खाई । निजियबाणगइपवहणाई गच्छंति निविग्धं ॥१७॥ गुरुलहरिमच्छकच्छवभुयंगजीवाइसंकुलं रुदं । दट्टण समुद्र भणइ निवसुया सीलवइ ! अम्मो! ॥१८॥ संसारु व समुद्दो दुत्तारो दुस्सहो दुरालोओ। दुरहिगमो दुक्खनिही विढयह धीराण खलु सुतरो ॥१९॥ अह पिसुणो व सकलुसो दुप्पडियारो जडत्तकयसंगो । रुद्दो अलद्धमझो अणोवयारी य है विसनिलओ ॥२०॥ एयारिसं समुदं रुदं जा सा सुदंसणा नियइ । ता तम्मि विमलसेले बेडॉदंडो लहुं पत्तो ॥२१॥ खलिऊण इत्थ ते पवहणाई निजामएण आइट्ठा । इंधणजलस्स तुरियं चडिया कम्मारया सेले ॥२२॥ भणियं रायसुयाए अम्मो! सीलवइ ! उयहिमञ्झम्मि । वणसंच्छण्णो दीसइ को एसो पचओ रम्मो ?॥२३॥ सीलवईए भणियं वच्छे ! विज्जा १ कर्णधाराः। २ जहाजके भागेका ऊंचा काष्ठ, गुजराती में 'सुकान' । ३ वित्थ । ४ प्रवहणसैन्यम् । ५ कर्मकारकाः । -SCACANCLOCALCALCONSCARCISEX For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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