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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - 4MARACTECASSACEBCAMBASEX अवि य-जणणीइ पसवसमए जं दुक्खं होइ नारयाणं च । तस्स न लक्खंसेणावि इमाई खलु सबदुक्खाई॥९८॥ आजम्मं सुकयं पि हु एगस्स वि जणणिगब्भसूलस्स । न समं संपइ अम्हाणं तं पिन हु मंदउण्णाण ॥९॥ सुणिऊण तीइ वयणं गलंतनयणंसुसित्तवच्छयलो। जंपइ राया वच्छे! पुणो तुमं कत्थ दीसिहिसि? ॥१०॥ तुह दीहविओयजलंतजलणडझंतयस्स मह तणुणो । विज्झवणत्थं पुण तुज्झ दंसणामयरसं कत्तो? ॥ १०१॥ जणणी वि माणमुग्गरगरुयपहाराहयब सहसावि । वियलंतसवगत्ता धसत्ति धरणीयले पत्ता ॥१०२॥ चंदणजलेण सित्ता सुहुमानिललद्धचेयणा देवी । भणिया : सीलवईए अमंगलं कुणह मा सुयणु!॥१०॥ धूयाविओयहुयवहधूमसिहाउलियवयणनयणाए । कह कहवि चंदलेहाइ | जंपियं गग्गरगिराए ॥१०४॥ जइवि मह सत्तपुत्ता तहवि तुह विरहजलणजलियाई। अंगाई तुज्झ संगमजलेण कह विज्झविस्संति? ॥१०५॥ भणियं सुदरिसणाए अम्मो! मा तुमं पुणो पुणो रुयसु । एसा धाईकमला लहु एसइ कुसलकहणत्थं ॥१०६॥ तो सीलवई आलिंगिऊण देवीइ सायरं भणिया। सुंदरि! नासो छ मए समप्पिया एस तुह धूया ॥१०७॥ अह सप्पणयं देवी जंपिया कहवि सीलवईयाए । अज्ज समप्पइ नेहो एयं पुण दंसणं दुलहं ॥१०८॥ वज्जघडियं व पियसहि! मह हिययं जं न जाइ सयखंडं। तं अजवि तुज्झ विओयपउरदुक्खं सहेयवं ॥१०९॥ तुम्हम्ह दीहविरहग्गिजालिओ कुवलयच्छि! नेहदुमो । दुक्खिधणसंजलिओ अविस्संतो डज्झइ वराओ॥११०॥ एयारिसं असारं संसारं मुणेवि दुक्खभंडारं ।। सारे जिणिंदधम्मे समुजया हुज सुयणु! तुमं ॥१११॥ एयारिससुह्यसुहासिएहिं संभासिऊण सा देवी । खामेवि नयरलोयं | , न्यास इव। २ अतिसरलो इत्यपि। ३ सुखदसुभाषितः । For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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