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लोहेण ॥ ६६ ॥ इय जा जणणि बाला पडिबोहइ धम्मसारवयणेहिं । ता वीणासंखपहायतूरसद्दो समुच्छलिओ ॥ ६७ ॥ | जयजयसद्दो मागहजणेण भट्टे हि कबनिग्घोसो । विहिओ वरवारविलासिणीहि सुहमंगलुग्गारो ॥ ६८ ॥ इत्थंतरम्मि तक्कालसमुचियं हियकरं च भवियाणं । एगेण मागणं पढियं कालण्णुणा एवं ॥ ६९ ॥ दिणरयणिघडियपहरच्छलेण मणुयाणं आउयं गलइ । इय जाणिऊण तुरियं सुधम्मकम्मुज्जया होह ॥७०॥ नक्खत्तकुमुयलच्छी मउलिज्जइ मंडलियम्मि रयणियरे । अहव सकलंकसंगेण परिहवो होइ किं चुजं ? ॥ ७१ ॥ रविकर नियरोसारियतिमिरं संचरइ गिरिवरगुहासु । सरणं पत्तं खुद्द पि अहव रक्खति जे गरुया ||७२ || दिणयरकरनियरासासियाई वियसंति कमलसंडाई । अवियप्पं होइ फलं अहवा पडि| वण्णनिवहणे ॥ ७३ ॥ जाए पहाय समए पुबनिउत्तेण कडयवालेण । दिण्णा पयाणढक्का घुटुं वेलाउलाभिमुहं ॥ ७४ ॥ लहु | सण्णज्जंति भडा तुरया पुरिसेहिं पक्खरिति । सज्जिज्जंति रहवरा गज्जति गया गुडिजंता ॥७५॥ इय सण्णद्धे कडए राया देवच्चणं करेऊण । लहु उसभदत्तसहिओ आरूढो संदेणे सुहए ॥ ७६ ॥ तह चंदलेहदेवी उच्छंगठियाए नियधूयाए । | सीलवईए सहिया सिबियारयणे समारुहिया ॥७७॥ रायकुमारा सत्त वि मंतियणो वरविलासिणीनिवहो । सबो वि नयरलोओ सुदरिसणाए समं चलिओ ॥ ७८ ॥ तूररवपसरकलयलरवेण पूरंतओ सयलभुवणं । पुरजणपरियणसहिओ पत्तो वेलाउले राया ॥ ७९ ॥ सबो सबत्थ सुवित्थरेण सुपएसकयसुहावासो । गुड्डरगुलणियपडमंड वेहि आवासिओ लोओ ॥८०॥ इत्थं| तरम्मि निज्जामएण पत्थावमुवगयं पहुणो । विष्णत्तं निव! पउणीकयाई वरपवहणसयाई ॥८१॥ सोऊण तस्स वयणं नरनाहो
१ लोयस्मि इत्यपि । २ मुकुलिते सङ्कुचिते इति । ३ गया गुडिजंति नजंता इत्यपि पाठः । ४ रथे ।
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