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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SUCAAKASAMSUNGACASC भणियं एवं ति किं पुणो सामि!। पूईजंति जणेणं गुणिणो सवत्थ जत्तेणं? ॥१०॥रण्णुब्भवं पि कुसुमं बज्झइ सीसेण सुरहिगंधहुँ । उज्झिजइ अविसंक नियअंगसमुब्भवो वि मलो॥१।। एसा य पुणो दढसीलरयणकवयाऽवंगूहियसरीरा । नवकारपहावपणदुदुद्रुसबोवसग्गगणा ॥१२॥ अवगयसमग्गतत्ता विसयविरत्ता सुधम्मपरिरत्ता।तियसगणाण वि पुजा सुदंसणा | ताव सयमेव ॥१३॥ किं पुण एसा वरसीलसालिणी सामिसाल! सीलवई । जियसत्तुभाइणेई सहाइणी तुज्झ धूयाए? ॥१४॥ सुकयपढमोवयारं सीलवईए सुणेवि वुत्तंतं, तुज्झोवरि सप्पणओ हविस्सए रायजियसत्तू ॥१५॥ ता मा करेह खेयं सो सुदरिसणाइ सबमवि काहिइ । धम्मपरो य कयण्णू साहम्मियवच्छलो राया ॥१६॥ सीलवई सप्पणयं निवेण संभासिउं इमं भणियं । तुम्ह सकजं एयं अम्हेहि न किंपि भणियचं ॥१७॥ इय जाणिऊण एवं जइवि सुदुक्खं ठिया तुम इत्थ । तहवि समीहियकजे सहाइणी हुज बालाए ॥१८॥ ___ अवि य-तुंगा वि वसणपडिया हयप्पयावा हवंति किं चोज ? । तुंगयरमणुसरंता माणं पावंति भाणुच ॥१९॥ भणियं सीलवईए पुणो पुणो कह नरिंद! तजेसि । एसा कुसलपउत्ती थोवदिणेहिं पि निसुणेसि ? ॥२०॥ ता वच्चउ एसा नरवरिंद! सुहयं समीहियं कुणउ । सयसुक्खदुक्खियाए इमाए पढमं हविस्सामि ॥२१॥ इय गमणिक्कमणाए धूयाए सबनिवुई काउं। आएसिऊण तह पवहणाहिवं उढिओ राया ॥२२॥ तो उसमदत्तसहिओ पढमं काऊण मज्जणं सुयं । | देवच्चणं च विहिणा करेइ तं मुणिवरुद्दिडं ॥२॥ उचियं देवि दाणं सुहेण सुहभोयणं च काऊणं । जा ठाइ सिट्टिसहिओ १ अरण्योद्भवम् । २ 'अवगृहिय० आलिङ्गित । ३ स्वामिश्रेष्ठ !। ४ सम० प्रत्यन्तरे इत्यपि दृश्यते। ५ देइ० इत्यपि । For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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