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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CREASSAUGURUCRUGROUS विकहाओ । सुविवेइणा हियत्थं, वजेयवं विसेसेणं ॥१०७॥ इयमेवमाई नरवर!, परिहरणाऽऽसेवणेण जहजुग्गं । एसो संखेवेणं, गिहिधम्मो तुह मए कहिओ ॥१०८॥ अण्णं पि राय ! निसुणसु, पइदियहं सावएण कायवं । जम्मि कए सत्तीएका पयेणुतरो होइ संसारो ॥१०९॥ तंजहा-निसिचरिमजामसमए, बुद्धो सुमरित्तु पंचनवकारं । जाइकुलदेवगुरुधम्मसंगयं चिंतए सड्डो ॥११०॥ तो छविहमावस्सयमणुट्ठिां अह दिणोदए ण्हाउं । सियवत्थो मुहकोसं काउं पूएइ गिहबिंबे ॥१११॥ सुमरिय पञ्चक्खाणं, इड्डिजुओ जाइ जिणहरं तत्थ । पविसिय विहिणा पूइय जिणबिंबे वंदए तत्तो ॥११२॥ गंतूण गुरुसमीवे, वंदिय गुरुसक्खियं च संवरणं । काउं निसुणिय धम्म, ववसायं वज्जइ विरुद्धं ॥११३॥ मज्झण्हे पुण काउं, जिणपूयं ढोइऊण नेवेजं । पडिलाभइ मुणिवसहे, फासुयएसणियदाणेणं ॥११४॥ साहम्मियवच्छल्लं, काउं दीणाइयाणमणुकंपं । बहुबीयाइविवजियमाहरइ सरिय संवरणं ॥११५॥ देवगुरुं च वंदिय संवरणं काउं कुणइ सज्झायं । इगभत्तो पुण सड्डो, भुंजइ दिवसहमे भागे ॥११६॥ संझासमए गिहचेइयाई पूइत्तु पुण वि वंदेइ । विहियावस्सयकम्मो, सज्झायं कुणइ सुहभावो ॥११७॥ नियमाणु-है साण तत्तो जहारिहं धम्मदेसणं कुणइ। पायं विसयविरत्तो पथदिणे पालए सीलं ॥११८॥ कयचउसरणगमाई, सावजं चइय गंठिसहिएणं । पंचनमुक्कारपरो, सेवइ थेवं तओ निहं ॥११९॥ निहाविगमे चिंतइ, किंपागफलोवमं बिसयसुक्खं । तह सिवपुरगमणरहे, चारित्तमणोरहे कुणइ ॥१२०॥ एवं पइदिणकिरियं, कुणमाणो माणघो विगयमाणो । गिहवासे वि वसंतो, . प्रतनुतरः-अल्पतर इति । २ प्रत्याख्यानम् । सुदंस०५ For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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