________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुदंसणा- ४ायसवगत्ता वि कह वि गयणंगणं समुड्डेवि । आमिसकएण सकरंकमिच्छवाडंमि संपत्ता ॥१०॥ बहुहडुचम्मवसरुहिरपूयदुग्ग-15जाईसरणचरियम्मि||धर्मसगिद्धेहिं । विकरालकरकोवरिनिविट्ठगिद्धेहि भीसणए ॥१०२॥ भमिऊण भूरि सा तत्थ मिच्छवाडंमि सवलिया कहा। निबद्धो
वि। गहिऊण मंसखंडं झडत्ति जा गयणमुड्डीणा ॥१०३|| मिच्छेणिक्केण पयंडचावगुणनिसियतिक्खसरलेण । आयण्णवि-IX तइओ ॥११॥
सज्जियमग्गणेण निहया उरे ताव ॥१०॥ सरविद्धा वि हु सा ताव सवलिया वेयणाविहुरगत्ता । उडुंतपडता कहवि, काण-131 उद्देसो। णुद्देसमणुपत्ता॥१०५॥ डिंभोवरि गुरुनेहा वि, सवलिया निवाडिया महीवीढे । विलवेइ विलिया सा, अइकरुणं करयरसरेणं ॥१०६॥ चिंतइ हा विहि ? निग्षिण !, मए विणा तुज्झ किं न पजत्तं ? । दीणाए मह सरिसो तुह साहीणो न किं अण्णो ? ॥१०७॥ किं वा मए कयाइ वि, तुज्झ कओ को वि गरुयअवराहो ? । एमेव निरवराहा जेण हयाऽहं तए पाव !13 ॥१०८॥ अह ताई डिभरूवाई अकयउण्णाई पंखरहियाई। छुहियाई देव! संपइ मह विरहे कह भविस्संति ? ॥१०९॥ विलवेइ जाव एवं, बाणहया सबलिया अहोरत्तं। सुहसंगमुख ता साहुजुअलयं तत्थ संपत्तं ॥११०॥ उंब्भेवि करं अभयंकरेहि भुवणस्स तेहिं भणियमिणं । अभओ भद्दे ! तुज्झ अम्ह गेयं मा भयं कुणसु ॥११॥ किं तु चइत्ता मोहं, उभयभवदुहावहं तहा कोहं । एगग्गमणा निसुणसु, परमहियं अम्ह वयणलवं ॥११२॥ ठाऊण कण्णमूले, तेहिं मुणिपुंगवेहिं इय भणियं । अरिहंतो तुह सरणं, जगुत्तमो मंगलं च तहा ॥११३॥ कम्मकलंकविमुक्का अणंतसुहनाणदंसणसरूवा । लोयग्गपइट्ठाणा, तुह सरणमणतया सिद्धा ॥११४॥ परिचत्तपंचविसया, पंचमहत्वयधरा महावीरा । पंचसमिया तिगुत्ता, सुसाहुणो हुंतु तुह
॥११॥ १ करक० अस्थिपञ्जर। २ पतिता। ३ 'करकरे' ति स्वरेण। ४ करमुरिक्षवा। ५ विज्ञातम् ।
USISISIPANCAR
For Private and Personal Use Only