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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदंसणा- भुवणभाणुगुरुपासे । भवभयभीओ गिण्हइ सामण्णमणण्णसामण्णं ॥३४९। विहरित्तु समं गुरुणा सुइरं चरिऊण चारु-18 प्रशस्तिः। चरियम्मिचारित्तं । सोहम्मे उववण्णो तओ चुओ पाविही मुक्खं ॥३५०॥ अह धणपालो संघेण संजुओ पुणवि नमिय नेमि-18 जिणं । पुणरुत्तं पिच्छंतो कवि नियत्तो जिणगिहाओ ॥३५॥ मुत्तूण तत्थ हिययं सरीरमित्तेण धणसिरीइ समं । ओय॥१३७॥ रिओ संघजुओ कमेण पत्तो हिरण्णउरं ॥३५२॥ काउं तित्थुज्जवणं चिरकालं पालिऊण गिहिधम्म । मरिऊण समाहीए। सकलत्तो सो गओ सग्गं ॥३५३॥ भोत्तूण तत्थ दिवाइ भोगभोगाई कालमपरिमियं । तत्तो चुओ कमेणं लहिही निवाण-6 सुक्खं पि ॥३५४॥ एवं किंचिवि कहियं सुदंसणापमुहभवजियचरियं । कहयंतसुणंताणं भवभेयं कुणउ भवियाणं ॥३५५|| इय सुदरिसणकहाए नवनवसंवेगसिरिघरनिहाए । मूलुद्दिदुप्पबंधप्परूवगो सोलसुद्देसो ॥३५६॥ [इइ सोलसमुद्देसो] पसत्थीसोलसइत्थुद्देसा अहिगारा हुंति अट्ट अत्थस्स । गाहाणं सबग्गं चउरो सहस्सा दुवण्णजुआ ॥१॥ अहिगारो धणपालोद हुँदंसणा विजयकुमर सीबई । असावयोह माया धाँइसुओ धावी इय अट्ठ ॥२॥ इत्थ य जमिहुस्सुत्तं वुत्तं मह ४ी तस्स दुक्कडं मिच्छा । पसिऊण परहियरया बहुस्सुया तं विसोहंतु ॥३॥ नवनवगमसंगमचंगआगमो जयउ वीरजिणणाहो। ................॥४॥ जस्स पसायं पावित्तु पाणिणो सुहमुहेण मल्लीणा । सिवपयपासायसिरंसो गोयमगणहरो जयउ ॥१३७॥ ॥५॥ तइलोयलोयविप्फुरियगरुयकुर्दिदुकंतकित्तिभरा । हुंतु सिवाय सुहम्मप्पहुपमुहा गणहरा सवे ॥६॥ चित्तावालयग SHRECENSESSIA CROGASACSOSTEOSASTRESS For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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