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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुदंसणारियम्मि ॥ १२१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुद्धं । सहसु तुमं धीरमणो बावीसपरीसहे दुसहे ॥ ९१ ॥ बायालदोसरहियं गिन्हसु आहारमंगवित्तिकए । सेवसु गुरुकुलवासं दमसु तुमं इंदियतुरंगे ॥९२॥ निजिणसु रागदोसे कसायसुहडे तुमं निराकरसु । आरुहिऊण सेटिं लहसु अहक्खायचारितं ॥९३॥ अपसत्थलेसरहिओ पसत्थलेसाणुगो विगयमोहो । रुद्दट्टज्झाणमुको धम्मज्झाणाणुगयचित्तो ॥ ९४॥ होऊण सुक्कलेसो विहरित्तु जहागमं सुहविहारं । मरिडं पंडियमरणेण वच्छ ! गच्छसु तुमं सुगई ॥ ९५ ॥ इय सोउं सो खयरो सिरिवीरजिणस्स पायमूलम्मि । सित्तुंजसेलसिहरे संविग्गो गिण्हए दिक्म्वं ॥ ९६ ॥ अब्भत्थदुविहसिक्खो विहरंतो भगवया समं एसो । तिब्बतवञ्चरणरओ ओहीणाणं समणुपत्तो ॥ ९७॥ तोलित्ता अत्ताणं तवसत्ताईहि पंचतुलणाहिं । पडिव - जित्ता सम्मं एगल्लविहारवरपडिमं ॥ ९८ ॥ णाणेण तुमं णाउं संपइ चंपयलए ! विमलसेले । इह तुह पडिबोहकए समागओ सो अहं भद्दे ! ॥ ९९ ॥ इय सुदरिसणकहाए मिच्छत्तभुयंगगरुडसरिसाए । मुदरिसणाइ सहोयरवित्रोहणो चउदसुद्देसो ॥ १०० ॥ [ इइ चउदसमुद्देसो ] अह पंचदसमो उद्देसो । अह भइ मुणी भद्दे ! इमस्स चेइयहरस्स उप्पत्ती । मूलाओ तह कहिया संपइ णियवइयरं सुणसु ॥१॥ जा य तया मह पासे सिंघलवइणा निरूविया धाई । पउमा सा मरिऊणं इत्तियकालं भवं भमिया ॥२॥ संपइ पाडलिणयरे जयरण्णो जयसिरीइ देवीए । जाया अइरमणीया धूया चंपगलया णाम ॥३॥ सा सबकलाकुसला वरलायण्णा पवण्णतारुण्णा । णियरुवगद्दियमणा परिणयणं निच्छइ मयच्छी ||४|| अह अण्णदिणे दहुं पडिविंवं चित्तपट्टियालिहियं । महसेणणिवस्स For Private and Personal Use Only धाईसुय महसेणप्पबोहणनाम पणरसमो उद्देसो । ॥ १२१ ॥
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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