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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुदंसणारियम्मि ॥ ११२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जत्तापेच्छणयं करेइ उवइसइ अह पसंसेइ । संधुणइ कुणइ गेयं सो थुबइ अमररमणीहिं ॥९३॥ जो देइ जिणवराणं कुंडल| केऊरहारवर तिलयं । सो सुरलोए निवसइ मणिरयणाहरियवरदेहो ||१४|| भिंगाराऽऽरत्तियकलसपवरधूवदहणसंखजयघंटा । जो देइ जिणाययणे महिडिओ सो सुरो होइ ॥ ९५॥ काहलहुडुक्कढक्काझहरिकंसालवं सवरवीणा । जो देइ अहव वायइ तस्स पुरो वज्जए एयं ॥ ९६ ॥ धयछत्तचिंधचामरविचित्तचंदोदयं च जो देइ । सो छत्तचमरमाईहि सोहिओ रमइ सुरलोए ॥९७॥ अह जिणभवणं बिंबं पमज्जए निद्धणो वि भावेण । संथवणनट्टगेयं करेइ अणुमोयइ परं वा ॥९८॥ लहिऊण परमबोहिं भोए भुत्तूण अमरनरलोए । सो पावइ मुत्तिसुहं अट्ठभवन्तरं नियमा ॥ ९९ ॥ ता कायवं सवं एवं भत्तीइ निययसत्तीए । जिणभवणबिंबपूयाइयं च जयणाइ सुविसुद्धं ॥ १०० ॥ तुह एयं साहीणं सर्व पि कमेण जह मए कहियं । ता तह करिज्ज विहिणा सिवसुहजणयं जहा होइ ॥ १०१ ॥ इय संवेगरसाऽमयकुंड निहाए सुदरिसणकहाए । अस्सावबोहतित्थष्परूवओ इगदमुद्देसो ॥ १०२॥ [ इइ एकारसमुद्देसो ] अह दुवालसमो उद्देसो । सिरिमाण भाणुगुरुवयणनिग्गयं निसुणिऊण वयणमिणं । पुण नमिजं सपरियणा सुदंसणा उट्ठिया तत्तो ॥ १॥ सीलवईइ समेया जियसत्तनिवेण नियगिहे नेउं । भुंजाविऊण सम्माणिया य गुरुगउरवेण इमा ||२|| दिण्णं विसालभवणं मणिकंचणरयणधण्णपडिपुण्णं । दिण्णो तीइ सहाओ धम्मत्थे उसभदत्तो सो ॥ ३ ॥ इत्थंतरम्मि कमला नरिंदधूआइ सायरं भणिया । सिंघलदीवे गमणं तुह जुज्जइ तायपयमूले ||४|| एसा कुसलपउत्ती गंतूण कहेह जणणिजणयाणं । सम्मत्तथिरी For Private and Personal Use Only सवलियाविहारवण्णणो ना म दुवाल समुद्देसो । ॥ ११२ ॥
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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