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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sri Kallassagarsuri Gyarmandie कमेण परलोयसाहणं साहियं मए तुज्झ । जिणभवणबिंबपूयाविहिं च संपइ निसामेह ॥७८॥ जाइकुलवित्तगुरुविणयसयणसमत्तभत्तिसंजुत्ता। रागाइदोसचत्ता उदारचित्ता महासत्ता ॥७९॥ जिणभवणबिंबकरणे एए अहिगारिणो उ उक्कोसा। अट्ठगुणा मज्झत्था इत्तो हीणा उ पडिसिद्धा ॥८०॥ एयारिसगुणकलिया तुमं च ता इत्थ तुज्झ अहिगारो। ता समवसरणठाणे जुज्जइ तुह जिणहरं काउं॥८॥ एयं पवित्तठाणं जिणपयफरिसेण जयविगयदोस । भणियं जिणेहि विहिणा कायचं मंगलं तहवि ।।८२॥ विहिणा सर्व पि कयं बहुप्फलं होइ उत्तमं कजं । विहिवज्जियं कुणंतो न पावए तं फलं पुरिसो ॥८॥ कयकिच्चा भगवंतो तित्थयरा तियसविहियवरपूआ । इय तित्थुण्णइहेउं इत्थ वि जुत्तो विहिं काउं ॥८४॥ दिसिदेवयाउ पुज्जा पढमं तह इत्थ दिजए दाणं । सम्माणिजइ सयणो पूइज्जइ नयरलोओ य ॥८५॥ जिणभवणत्थं च देलं सनिमित्तं तं विसेसमुल्लेण । गहिअब जयणाए जम्हा धम्मत्थमारंभो ॥८६॥ सल्लाइसयलदोसे भूमीए सोहिऊण जत्तेण । कायवं जिण भवणं पभावगं होइ जेण सया ॥८७॥ विण्णाणियकम्मारा विसेसदाणेण तोसिया काले इच्छंति कजसिद्धिं सकजसिद्धी है निवाणं ॥४८॥ बीसधणुमाणमरगयमणिमयदेहस्स सुव्वयजिणस्स । तह कायचं विंबं आणंदयरं जहा होइ ॥८९॥ | एवं च-जो जिणभवणं दंसणपभावणत्थं करेइ भावेण । भुत्तूण सयलपुहई सो कीलइ सुरविमाणेसु ॥९०॥ सोमं विरं विसालं पावहरं जो करेइ जिणबिंबं । अमरच्छरपरियरिओ विलसइ सो देवलोएसु ॥९॥ तहाहि-सुइसुपवित्तो भत्तीइ सुरहिकुसुमेहि करइ जिणपूअं । सो देवकुसुममालाअलंकिओ वसइ सुरलोए ॥९२॥ बलि१ वस्तुसमूहम् । SACROSORRECEMCALLIANCARNA For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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