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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदंसणा- पाहण्णा । तह सबसत्थबहुमयलोयववहारपरनयओ ॥८४६॥ विणया नाणं नाणाओ दंसणं दसणाओ चारित्तं । चारित्ताओ है रयणत्तय चरियम्मिमुक्खं मुक्खे सुक्खं निराबाहं ॥८४७॥ चारित्तवज्जियाणं नाणीण वि जेण दुल्लहा सुगई । पंगुव वणदवेणं दज्झइ पास स्सरूवप्पदनियंतो वि ॥८४८॥ पवणेण विणा न तरइ उयहिं जह पउणजाणवत्तं पि। तह चारित्तविहूणो न तरइ नाणी वि भवजलहिं रूवग नाम ॥१०५॥ M८४९॥ जह पुण अंधाऽऽरूढो पंगू लंघेइ वणदवं सिग्छ । तह चारित्तसमेओ नाणी वि भवाडविं तरइ ।।८५०॥ दसमुद्देसो। । जओ-नाणं पयासयं सोहओ तवो संजमो य गुत्तिकरो। तिण्हं पि समाओगे मुक्खो जिणसासणे भणिओ ॥८५१॥ नाणं चरित्तहीणं लिंगग्गहणं च दंसणविहीणं । संजमहीणं च तवं जो चरइ निरत्थयं तस्स ॥८५२॥ णाणं चरणपहाणं |लिंगग्गहणं च दंसणसमेयं । संजमसहिअंच तवं जो कुणइ भवक्खओ तस्स ॥८५३॥ एयाई नाणदंसणचरित्तरूवाई तिणि पारयणाई। जे धारेंति जए ते दुलहा जिणसासणे भणिया ॥८५४॥ णाणं च दंसणं तह चरणं चाऽऽराहिउं कमेण जिओ। नरसुरसिवसुक्खाई लहइ लहुं जिण्णवसहुव ॥८५५॥ | तहाहि-अस्थि इह भरहखित्ते खेमपुरी पुरवरी उ परखेमा । तत्थ नयविणयपउणो नयदत्तो नाम वरसिट्टी ॥८५६॥ तस्स पिया वसुणंदा सीलाइगुणोहकयजणाणंदा । ताण य पुत्तो जिट्ठो धणदत्तो गुणगणगरिहो ॥८५७॥ बीओ विमाणदाणीओ मणंसिणं किंतु ईसिमाणधणो । वलुदत्तो नामेणं नियभाऊवच्छलो अहियं ॥८५८॥ तत्थऽस्थि दिओ पयईइ वामओ १ ॥१०५॥ वामदेवनामु त्ति । सो ताण सिट्ठिपुत्ताण बालमित्तो कहवि जाओ ॥८५९॥ अण्णो वि तत्थ इब्भो समुद्ददत्तु त्ति अत्थि ६ वरसिट्ठी। तस्स य धूआ नामेण गुणवई गुणमहग्घविआ॥८६०॥ धणदत्तस्स य दिण्णा नयदत्तसुअस्स बहुजणसमक्खं ।। KANGRECESSAREER For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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