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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir सुदंसणा- त्ति नाम कयं जिणिंदस्स जणएहिं ॥३३०॥ नियअंगुट्ठपएसे सुरवइसंचारियाऽमयरसेण । वहुइ सुरपरियरिओ अणूवदेसे रयणत्तय. चरियम्मि 18 वरदुमुव ॥३३॥ असियसिरओ सुनयणो बिंबुट्ठो धवलदंतपंती अ। वरपउमगभगोरो फुल्लुप्पलगंधनीसासो ॥३३२॥ जास्सरुवप्प ताजाईसरो य भवयं अप्परिवडिएहिं तिहि णाणेहिं । कंतीइ य बुद्धीइ य अन्भहिओ तेहि मणुएहिं ॥३३३॥ इक्खागुवंसठ-द ॥८८॥ रूवग नाम कवणा वरिसपमाणस्त निम्मिया हरिणा। कासवगुत्तं च पहुस्स पुबया जेण तं पीया ॥३३४॥ जयमज्जायकए सह देवीहिं सुमं- दसमुद्देसो। सालासुणंदाहिं । हरिणा कओ विवाहो पहुस्स तारुण्णपत्तस्स ॥३३५॥ छप्पुबसयसहस्सा पुर्वि जायस्स जिणवरिंदस्स। तो भर हबंभिसुंदरिबाहुबली चेव जायाई ॥३३६॥ देवी सुनंगलाए भरहो बंभी य मिहुणयं जायं । देवीइ सुणंदाए बाहुबली सुंदरी चेव ॥३३७॥ अउणापण्णं जुयले पुत्ताण सुमंगला पुणो पसवे । नीईण अइकमणे निवेयणं उसभसामिस्स ॥३३८॥ राया करेइ दंड सिटे ते विति अम्ह वि स होउ। मग्गह य कुलगरं सो उ बेइ उसमोय राया ॥३३९॥ आभोएउं सक्को उवागओ कुणइ तस्स अहिसेयं । वोलीणेसु जम्माओ वीसईपुबलक्खेसु ॥३४०॥ भिसिणीपत्तेहियरे उदयं घिनुं छुहंति पाएसु । साहुविणीया पुरिसा विणीयनयरी अह निविट्ठा ॥३४॥ आसा हत्थी गावो गहियाई रजसंगहनिमित्तं । चित्तूण एवमाई चउपिहं संगहं कुणइ ॥३४२॥ उग्गा भोगा राइपणखत्तिया संगहो भवे चउहा। आरक्खिगुरुवयंसा सेसा जे र खत्तिया ते उ ॥३४॥ अप्पत्थियसिवसुहदायगम्मि रिसहे अउधकप्पदुमे। ओइण्णे कप्पतरू तइया हित्था इव पउत्था ॥३४४॥ तो रिसहजिणो पयडइ जणाण करुणाइ जीयकप्पं ति । सिप्पसयं कम्माणि य कलाओ उण भरहमाईणं ॥३४५॥ ॥८८॥ जल-बहुलवाने। २ जिताः। ३ प्रोपिता:-प्रवासमें गये। HOMASAMMONSORRORESAX HEARSONALISAGAR For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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