________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
सुदंसणाचरियम्मि ॥ ८६ ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विसेसं तुह हियहेडं ति अकहणिज्जं पि । जण्णायत करेहिं चिप्पसि नहि सावहाणमणो ॥ २६७ ॥ केणाऽवि हु कज्जेण जया जया एमि तुम्ह गेहम्मि । तुम्ह पिया एगंतं नाउं पत्थइ ममं तइया ॥ २६८ ॥ जाणामि अहं एसा सयमेव नियत्तिही अकजाओ । उधेयकरं जम्हा परदोस पयासणमजुत्तं || २६९|| संपइ पुण पावाए अच्चत्थं पत्थिओ अहं तीए । तत्तो कह कह वि मिउब वागुराओ अहं मुक्की ॥२७०॥ इय सोउं संभंतो सागरचंदो वि भणइ सरलमणो । न विसाओ कायबो वयंस! तुमए मणागं पि ॥ २७२ ॥ वरमित्त ! निययकम्मेहिं जारिसी तारिसी इमा होउ । मा होज पुणो कइया अम्हाणं चित्तविस्सेसो ॥ २७२ ॥ इय अणुणीओ सो तेण हरिसिओ तक्खणेण संजाओ । सकारयंति अप्पं कयाऽवराहा वि जं कुडिला ॥ २७३ ॥ तप्पभिइ पुणो तीए तदुवरि निण्णेहमाणसो वि इमो । सुयणत्तणेण पुढं व नवरि वट्टइ समं तीए ॥ २७४ ॥ उवसमपराइ पियदसणाइ सोऽसोगदत्तवृत्तंतो। नक्खाओ नियपइणो मा होइ इमेसि मणभेओ || २७५ || कारागारं व पुणो संसारं सागरों विचिंततो । वित्तं उदारचित्तो दीणाइसु वियरइ विरत्तो ॥ २७६ ॥ सागरचंदो पियदंसणाइ मज्झिमगुणाइ कालेण । तह सो असोगदत्तो तिष्णि वि पत्ताई पंचत्तं ॥ २७७॥
अह इत्थ जंबूदी दाहिणभरहद्धमज्झिमे खंडे । ओसप्पिणीइमीए बहुवोलीणे तइयअरए ॥ २७८ ॥ पलियट्ठमंससेसे सागरचंदस्स तप्पियाए य । जीवो जुयलत्तेणं उप्पण्णो पुण्णसुहपुण्णो ॥ २७९ ॥ नवधणुसयाइ तेसिं उच्चत्तेणं सरीरपरिमाणं । पलिओवमदसमंसो आऊ दुण्हं पि तम्मि भवे ॥ २८०॥ दुहं पिहु संघयणं पढमं पढमं च तेसि संठाणं । जुगलिणरो कणयपहो पियंगुवण्णा य से भज्जा ॥ २८१॥ तत्थेव य भूमीए मायावसओ असोगदत्तजिओ । जाओ दंती
For Private and Personal Use Only
रयणत्तयस्सरूवप्प
रूवग नाम
दसमुद्देसो ।
॥ ८६ ॥